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प्रलय एवं कान्ति का आह्वान करना छायावादी कवियों की एक प्रमुख प्रवृत्ति रही है। सच तो ये है कि छायावादी कवि तात्कालिक व्यवस्था से ऊब चुके थे। वे चाहते थे कि परिवर्तन अविलम्ब हो यही आह्वान कवि अपनी इस कविता में करता है:
"एक बार बस और नाच तू श्यामा! सामान सभी तैयार,
कितने ही हैं असुर, चाहिए कितने तुमको हार?'' कवि का आह्वान उस अदृश्य शक्ति से है कि हे माँ एक बार तू अपने शक्ति का प्रयोग कर जन-जन में कान्ति करने की प्रेरणा भर दो चाहे इसके लिए हमारे राष्ट्र के लोगों का कुछ कुर्बानियाँ ही क्यों न देनी पड़े क्योंकि कोई भी बड़ी कान्ति होती है तो जन-धन की हानि होना स्वाभाविक है। कवि स्वयं से प्रश्न करता है कि आखिर कितना अत्याचार और हम सहें ? यहाँ प्रश्नालंकार दृष्टव्य है।
कवि निराला 'स्मृति' का मानवीकरण करके मन के भावों का सजीव चित्रण करते हैं साथ ही साथ अतीत के भूले-बिछड़े पलों को भी चित्रित करने का सफल प्रयास करते है :
"जगाने में है क्या आनन्द?
श्रृंखलित गाने में क्या छन्द 2 कवि निराला 'स्मृति' कविता के माध्यम से प्रश्न करते है कि संसार के व्यक्तियों के हृदय की पिछली कामनाओं को किसी बन्द वाणी में सोती हुई तान को, अतीत काल की किसी मातृ-भाषा को तथा मृत्यु की अटलता के स्मरण को जगाने में तुझे क्या आनन्द मिलता है? जरा बता कि अस्त व्यस्त या
1. आवाहन : निराला रचनावली भाग एक : पृष्ठ - 85 2. स्मृति : लिराला रचनावली भाग एक:पृष्ठ-192
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