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आज का तीक्ष्ण-शर-विघृत-क्षिप्र-कर वेग-प्रखर;
शत-शेल सम्वरण-शील-नील-नभ- गर्जित-स्वर ।। काव्य सौन्दर्य की दृष्टि से यह कविता आधुनिक हिन्दी काव्य के प्रगति की सीमा मानी जा सकती है। इसमें राम-रावण के युद्ध का वर्णन है। महाशक्ति रावण को संरक्षण प्रदान करती है, राम के सभी वार (तीर से छोड़े गए) खाली जाते हैं । 'शत-शेल सम्बन्ध शील में अनुप्रास अलंकार है।
कवि निराला विभीषण की शंकाओं को निर्मूल बताते हुए तथा उन्हें सान्त्वना देते हुए राम के उत्तर का वर्णन करते हुए कहते है:
"रावण का अधर्मरत भी अपना, मैं हुआ अपर यह रहा शक्ति का खेल समर शंकर-शंकर। करता मैं योजित बार-बार शर-निकर निसित;
हो सकती जिनसे यह संस्कृति सम्पूर्ण विजित ।।"2 बंगाल में दीपावली के समय काली-पूजा का प्रभाव स्पष्ट है निराला के कवि हृदय ने सदैव शक्ति की पूजा की है यह सम्पूर्ण काव्य मानो महाशक्ति का खेल हो गया है कवि कहता है, हे शंकर रक्षा करो! मैं शान पर चढ़ाए हुए उन तीक्ष्ण वाणों का बार-बार संधान करता हूँ यहाँ 'शक्ति शंकर-शंकर में अनुप्रास की झलक स्पष्ट है, कवि कहता है कि कोई अदृश्य शक्ति अन्याय का प्रतीक रावण की सहायता कर रही हैं। रावण का अट्टहास एवं गर्जन-युक्त स्वर राम को आहत कर रहा था 'राम' के सारे अस्त्र रावण के ऊपर निष्प्रभावी हो गए
थे।
डाली पर पार्वती का आरोप करते हुए कवि निराला कहते हैं :
रूखी री यह डाल,
1. राम की शक्ति-पूजा : निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ-239 2. 'राम की शक्ति-पूजा': निराला की रचनावली भाग(1) पृष्ठ-334
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