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________________ की। कवि निराला अपने सम्पूर्ण जीवन में परम्पराओं रूढ़ियों को बार-बार तोड़ा हालांकि उनके इस कार्य से लोगों ने उन्हें तिरष्कृत एवं बहिष्कृत भी किया लेकिन यह मनमौजी कवि बिना किसी की परवाह किए इन रूढ़िवादी समाज से अकेले लड़ने का वीणा उठाया। हलांकि इस विद्रोह की कीमत भी कवि को बहुत चुकानी पड़ी। इसीलिए इनके काव्य में भी छन्दों से बन्धन - मुक्त होकर रचना की है "उतरी नभ से निर्मल राका; पहले जब तुमने हँस ताका, बहुविध प्राणों को झंकृत कर; बजे छन्द जो बन्द रहे । "1 निराला जी ने यहाँ यह दर्शाने का प्रयास किया है कि नायिका के हास्य-दर्शन प्राप्त करते ही मेरे कण्ठ से कविता फूट पड़ी थी । अर्न्तरात्मा से अनेक भाव भी परिलक्षित होते हैं। और कोई भी काव्य यदि अर्न्तरात्मा की आवाज से निकला हो तो कविता में वेदात्मक भाव स्वयमेव परिलक्षित हो उठेगें। नभ से निर्मल में 'न' की आवृत्ति कई बार हुई अनुप्रास अलंकार स्वयमेय झलकता है। कवि निराला अपने सम्पूर्ण काव्य में चाहे व प्रकृति रूपी नायिका हो या अध्यात्म से जुड़े राम हों सबका मानवीकरण करते हुए काव्य जगत को एक नया आयाम दिया है । यहाँ कवि सामान्य मानवरूपी 'राम' एवं अन्याय का पर्याय बन चुका रावण के संग्राम की चर्चा को बड़े ही सजीव ढ़ंग से चित्रित करने का प्रयास किया है: "रवि हुआ अस्त, ज्योति के पत्र पर लिखा अमर; रह गया राम, रावण का अपराजेय समर । 1. नुपुर के स्वार मन्द रहेः अपराः पृष्ठ-39 100
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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