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द्रव्यविचार
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अमूर्त द्रव्योंके गुण संक्षेपमें इस प्रकार हैं : आकाशद्रव्यका गुण अवगाह - अन्य द्रव्योंको जगह देना है । धर्मद्रव्यका गुण गति हेतुत्व - गतिमान् द्रव्योंकी गतिमें निमित्त होना है । अधर्म द्रव्यका गुण स्थिति - हेतुत्व — स्थितिरूप परिणत द्रव्योंको स्थितिमें निमित्त होना है । कालद्रव्यका गुणवर्तना- अपने-आप वर्तने, अपनी सत्ताका अनुभव करनेमें निमित्त होना है । उपयोग — बोधरूप व्यापार चेतना है | ( प्र०२, ४१-२ )
आत्माका गुण
आकाशद्रव्य लोक और अलोकमें सर्वत्र अधर्मद्रव्य लोकमें रहते हैं । जीव और पुद्गलके आधारसे कालद्रव्य भी समस्त लोकमें विद्यमान है | आकाशके प्रदेशोंकी भाँति धर्म, अधर्म और जीव द्रव्यके भी प्रदेश होते हैं । परमाणुमें प्रदेश नहीं होते, वरन् परमाणुके आधारपर ही आकाश आदिके प्रदेश निश्चित किये जाते हैं । एक परमाणु जितने आकाशको घेरता है, आकाशका उतना भाग प्रदेश कहलाता है । यह एक प्रदेश अन्य समस्त द्रव्योंके अणुओंको अवकाश दे रहा है । जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश ये पाँच द्रव्य असंख्य प्रदेशवाले हैं ।
व्याप्त है । धर्म और
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आता है । प्रकाशकी तरह जहाँ-तहाँ जा सकता है । वायुके प्रवाह में वह सकता है, तीव्र शब्द के द्वारा दब सकता है इत्यादि कारणोंसे शब्द मूर्तिक है अतः वह श्राकाशका गुण नहीं हो सकता ।
१. अपनी-अपनी पर्यायोंको उत्पत्तिमें स्वयं प्रवर्तमान द्रव्यों में निमित्त रूप होना वर्तना है ।
२. कालद्रव्यको जीव पुद्गल के आधारसे रहनेवाला कहनेका अर्थ यह है कि कालद्रव्य के समय, घड़ी, घण्टा आदि परिणमन जीव और पुद्गल के पर्यायों द्वारा ही प्रकट होते हैं ।
३. इतनी विशेषता है कि आकाश अनन्त प्रदेशवाला है । एक जीव,
धर्म और अधर्म असंख्यात प्रदेश हैं । पुद्गल द्रव्य परमाणुरूपमें यद्यपि एकप्रदेशी है तो भी उसमें दूसरोंके मिलनेकी शक्ति होनेके कारण अनन्त प्रदेशात्मकता सम्भव है ।