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अर्थात् स्वकीया नायिका शील तथा सरलता आदि से युक्त होती है, वह मुग्धा, मध्य, प्रगल्भा तीनप्रकार की होती है। साहित्यदर्पणकार ने स्वकीया की परिभाषा - ' विनर्याजवादियुक्ता गृहकर्मपरा पतिव्रता स्वीया' दिया है।' परकीया नायिका पर पुरुष से अनुराग करती हुई भी उसे प्रकट न करने के कारण परकीया की जाती है। सामान्या प्रायः वेश्या होती है वह धीर एवं कला प्रगल्भ होती है। आचार्य धनञ्जय के अनुसार साधारणस्त्री गणिका कलाप्रागल्भ्यधौर्त्ययुक्।’’’
इन नायिकाओं की आठ अवस्थाएं होती है- १. स्वाधीनपतिका २. वासकसज्जा ३. विरहोत्कण्ठिता ४. खण्डिता ५. कलहान्तरिता ६. विप्रलब्धा ७. प्रोषितप्रिया ८. अभिसारिका ।
१. स्वाधीनपतिका - स्वाधीनपतिका वह नायिका मानी जाया करती है जिसका प्रणयी उसके प्रेम की डोर में बँधा हुआ उसे छोड़कर कहीं अन्यत्र नही जा सकता। इसके अतिरिक्त इसकी यह भी विशेषता है कि (नायक केप्रति) इसके विविध विलास बड़े विचित्र और मनोरञ्जक हुआ करते हैं
कान्तो रतिगुणाकृष्टो न जहाति यदन्तिकम् । विचित्रविभ्रमासक्ता सा स्यात्स्वाधीनभर्तृका ।।'
दशरूपककार ने स्वाधीनपतिका के विषय में कहा है कि 'जिस नायिका का पति समीप में स्थित है तथा उसके अधीन है और जो प्रसन्न है वह स्वाधीनपतिका है ' आसन्नायत्तरमणा हृष्टा स्वाधीनभर्तृका । *
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सा. द. पृ० ७२/३/५६
दशरूपकम्
साहित्यदर्पण पृ. सं. १६८, ३ / ७८
दशरूपकम् पृ. सं. १५२