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२. वासक सज्जा - प्रिय के आगमन की आशा होने पर जो हर्ष के साथ अपने को सजाती है वह वासकसज्जा है। 'मुदा वासकसज्जा स्वं मण्डयत्येष्यति प्रिये।"
आचार्य विश्वनाथ ने वासकसज्जा के विषय मे अपना विचार इस प्रकार से प्रस्तुत किया है -
'कुरुते मण्डनं यस्याः सज्जिते वासवेश्मनि। सा तु वासकसज्जा स्याद्विद्वितीतयसङ्गमा।।'
अर्थात 'वासकसज्जा वह नायिका है जो, अपने सजे-धजे रंगमहल में, अपनी सखियो द्वारा सजायी जाया करती है और अपने प्रियतम से मिलने की प्रतीक्षा में पड़ी रहा करती है। भरतमुनि के अनुसार -
उचिते वासके या तु रतिसंभोगलालसा। मण्डनं कुरूते हृष्टा सा वै वाजकसाज्जिका।।'
३. विरहोत्कण्ठिता - निरपराध होते हुए भी प्रिय के देर करने पर उत्कण्ठित रहने वाली नायिका विरहोत्कण्ठिता कहलाती है
'चिरयत्यप्यलीके तु विरहोत्कण्ठितोन्मनाः।'
साहित्यदर्पणकार के अनुसार - 'विरहोत्कण्ठिता' वह नायिका है जिसका प्रियतम, उससे मिलने के लिए उत्सुक होने पर भी दैववश, उससे नही मिल पाता और इसलिए जिसे वियोग की व्यथा विह्वल बना दिया करती
आगन्तुं कृतचित्तोऽपि दैवन्नायाति यत्प्रियः।
दशरूपकम् पृ. सं. १५३ साहित्यदर्पण ३/८५ नाट्यशास्त्र २२-२१३