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श्रीनेमि दृढ संकल्पी थे। एक बार दीक्षा ग्रहण करने का संकल्प लेनेके बाद अपने मार्ग से विचलित नही होते है।
जैसा कि हम जानते है कि श्रीनेमि जैनधर्म के बाइसवे तीर्थकर थे। अतः उनमे आदर्श महापुरुष का व्यक्तित्व भी दृष्टिगत होती है। उन्हे जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य का ज्ञानहै । इस चरम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संसार के सुख आनन्द आदि सभी कुछ त्यागकर दीक्षाग्रहण कर लेते है।
राजीमती राजीमती जैनमेघदूतम् की नायिका है । राजीमती का चरित्रांकन करने से पूर्व हम काव्य शास्त्रीय दृष्टि से नायिकाओ के भेदों और अवस्थाओं के विषय मे बताना चाहते हैं। तत्पश्चात् यह भी बताना चाहते है कि राजीमती किस प्रकार की नायिका है।
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काव्याचार्यो विशेषकर साहित्यदर्पणकार आचार्य विश्वनाथ तथा दशरूपककार आचार्य धनञ्जय और काव्यदर्पणकार ने काव्यात्मा रस विवेचन के अन्तर्गत आलम्बन आश्रयरूपा नायिका को विभिन्न भेदों से प्रस्तुत किया
है।
काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में नायिका भेद के प्रमुख रूप से ३ भेद मिलते है- १. स्वकीया २. परकीया ३. साधारणस्त्री । 'अथ नायिका त्रिभेदा स्वान्या साधारणस्त्रीति।” विनय सरलता आदि गुणो से युक्त घर के काम काज में निपुण, पतिव्रता स्त्री स्वकीया कहलाती है।
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दशरूपककार ने भी स्वकीया नायिका के ३ भेदों का उल्लेख करते हुए निम्नलिखित परिभाषा प्रस्तुत किया है
'मुग्धा मध्या प्रगल्भेति स्वीया शीलार्जवादियुक्'
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विश्वनाथ- सा.द. पृ. ७१, ३/५६
दशरूपकम् पृ. सं. १३५
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