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विप्रसन्देश:-' इस दूतकाव्य के रचयिता महामहोपाध्याय श्री लक्ष्मण सूरि ने की है। इसमे रूक्मिणी ने एक ब्राह्मण को अपना दूत बनाकर श्रीकृष्ण के पास अपना सन्देश भेजा है।
विप्रसन्देश:- यह दूतकाव्य अपने नाम का दूसरा दूतकाव्य है। यह कैगनोर निवासी कोचुनि तंबिरन द्वारा प्रणीत है। विप्रसन्देश मे एक विप्र द्वारा दौत्यकर्म सम्पादित करवाया गया है। किस प्रयोजन से दूत भेजा गया है, इसके विषय मे अधिक ज्ञात नही है। काव्य का मात्र उल्लेख प्राप्त होता है।
श्येनदूतम् :-* यह काव्य श्री नारायण कवि द्वारा प्रणीत है। कावय में श्येन अर्थात् बाज द्वारा दैत्य कर्म सम्पादित करवाया गया। इस काव्य के विषय मे बहुत अधिक जानकारी नहीं मिल पाती है।
शिवदूतम्:-' इस दूत काव्य का भी मात्र उल्लेख प्राप्त होता है। इसके रचयिता तंजौर मण्डल के अन्तर्गत मटुकाबेरी के निवासी श्री नारायण कवि जी है। इन्होनें काव्य और गद्य दोनो से सम्बन्धित जीवन चरित्र लिखा
शुकदूतम्:-' यह दूतकाव्य श्री यादवचन्द्र द्वारा रचित है। इस दूतकाव्य मे एक नायिका एक शुक के माध्यम से अपना विरह संदेश अपने प्रिय नायक को पास भेजती है।
अर्ष लाइब्रेरी, विशाखा पट्टनम् , अप्रकाशित पूर्ण चन्द्रोदय प्रेस, तंजौर से सन् १९०६ में प्रकाशित जर्नल सोसादटी आफ द रायल एशियातिक (१९००) पृ. ७६३ एवं संस्कृत साहित्य का इतिहास कृष्णमाचारियर, पृ. ६६८९ पैरा ७२७ अप्रकाशित। संस्कृत साहित्य का इतिहास कृष्णमाचरियर पृ. २५८ पैरा १८०, अप्रकाशित। वही जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग २, किरण २ पृ. ६४ अप्रकाशित।