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यज्ञोल्लास:-' कृष्णमूर्ति द्वारा रचित यह दूतकाव्य मेघदूत का परवर्ती काव्य साहित्य पर पड़े प्रभाव का परिचायक है।
रथाङ्गदूतम्:-* इस दूत काव्य के रचनाकार श्रीलक्ष्मी नरायण है। नाम के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि किसी रथ के अङ्ग को दूत निश्चित किया गया है। सूची पत्र पर इस काव्य का उल्लेख मिलता है तथा मैसूर से प्रकाशित भी है।
वकदूतम्-' यह दूतकाव्य महामहोपध्याय अजितनाथ न्यायरत्न ने की है। इसमे कुल २५० श्लोक है अन्य सूत्रो के आधार पर प्रकट होता है कि काव्य में वक द्वारा दौत्य सम्प्रेषण करवाया गया है। यही तथ्य नाम द्वारा भी स्पष्ट होता है। यह दूतकाव्य परम्परा में बिल्कुल भिन्न है। इसमें प्रिय वियुक्ता मधुकरी ने प्रियतम मधुकर के अन्वेषणार्थ वक को दूत बनाकर भेजा है।
वाङ्मण्डनगुणदूतम्:-* श्री वरेश्वर द्वारा प्रणीत इस दूतकाव्य में कवि ने अपने सूक्त गुण को दूत बनाकर एक राजा के पास आश्रय प्राप्त करने हेतु भेजा है। काव्य अतीव सुन्दर है।
वायुदूतम्:-" इस दूतकाव्य के कर्ता के विषय मे कुछ भी ज्ञात नहीं है। प्रो. मिराशी ने अपनी पुस्तक में इसका उल्लेख किया है।
विटदूतम्:-' इस दूतकाव्य के बारे में भी कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती। कवि का नाम भी अज्ञात है। काव्य की एक प्रति सुरक्षित है।
संस्कृत साहित्य का इतिहास, वाचस्पति गैरोला पृ. ९०२ अप्रकाशित। मैसूर से प्रकाशित, अज्या लाइब्रेरी के हस्तलिखित संस्कृत ग्रन्थसूचीपत्र के भाग २ सं. १६ पर द्रष्टव्य प्राच्य वाणी मन्दिर, कलकत्ता में पाण्डुलिपि ग्रन्थ संग्रह, सं. १४३ परद्रष्टव्य
काव्य की मूल प्रति लेखक के सुपुत्र श्री शैलेन्द्रनाथ भट्टाचार्य के पास सुरक्षिता ___ डा. जे. बी. चौधरी द्वारा कलकत्ता से सन् १९४१ में प्रकाशित।
कालिदास, प्रो. मिराशी, पृ. २५८।