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शुकसन्देशः - ' यह भी अपने नाम का दूसरा दूतकाव्य है। इसमें भी दौत्य का कार्य एक शुक के माध्यम से करवाया गया है। इसके रचयिता दाक्षिणात्य कवि करिंगमपल्लि नम्बूदरी है।
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शुकसन्देश:- श्री रंगाचार्य द्वारा प्रणीत अपने नाम का यह तीसरा दूतकाव्य है। कथावस्तु स्वतन्त्र रूप से रचित है। इसमें भी शुक द्वारा सन्देश सम्प्रेषण हुआ है।
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शुकसन्देश:- इस दूतकाव्य के रचनाकार वेदान्तदेशिक के पुत्र श्री वरदाचार्य है। जैसा कि नाम से स्पष्ट होता है कि सन्देश सम्प्रेषण का कार्य एक शुक के द्वारा हि करवाया गया है। काव्य का विशेष उल्लेख नही प्राप्त होता है।
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सिद्धदूतम्: - * इस दूतकाव्य में कालिदास द्वारा रचित मेघदूतम् की समस्यापूर्ति भर की गई है। इसके रचनाकार अवधूत रामयोगी हैं। इसका दूतकाव्यपरम्परा मे महत्वपूर्ण स्थान है।
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सुभगसन्देश :- ' इस दूतकाव्य के रचयिता श्री नारायण कवि हैं। ये जयसिंहनाद के राजा रामवर्मा की सभा मे कवि थे । अतः इस दूतकाव्य का समय १५४१-१५४७ ई. होगा। काव्य का कुछ ही अंश प्राप्त हुआ है अभी प्रकाशित नही है। इस दूत काव्य में १३० श्लोक है।
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श्री गुस्टव आपर्ट द्वारा संकलित दक्षिण भारत के निजी पुस्तकालयों के संस्कृत हस्तलिखित ग्रन्थ सूची, मद्रास के ग्रन्थ सं. २७२१ और ६२४१ पर द्रष्टव्य श्री लेविस राइस द्वारा संकलित मैसूर एवं कुर्ग के संस्कृत हस्तलिखित ग्रंथों की सूची, बंगलौर मे ग्रन्थ सं. २२५० पर द्रष्टव्य अप्रकाशित ।
गुरू परम्परा प्रभाव, मैसूर (१९८) एवं संस्कृत के सन्देशकाव्य रामकुमार आचार्य परिशिष्ट २ अप्रकाशित।
पाटन से सन् १९१७ में प्रकाशित।
जर्नल ऑफ रायल एशियाटिक सोसायटी (१८८४) पृ. ४४० पर द्रष्टव्य ।