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मयूर सन्देश:-' यह दूतकाव्य श्रीरंगाचार्य द्वारा प्रणीत है। इस काव्य मे दूत सम्प्रेषण का माध्यम मयूर को बनाया गया है। राम या कृष्ण कथा पर आधारित न होकर काव्य की कथा स्वतन्त्र है।
मयूर सन्देश:-' इस तृतीय मयूर सन्देश के रचनाकार श्री निवासाचार्य जी है। एक स्वतन्त्र कथा को लेकर इस काव्य का भी रचना की गई है। काव्य बहुत सुन्दर है।
मयूर सन्देश:-' किसी अज्ञात कवि द्वारा रचित इस दूतकाव्य का ग्रन्थ भण्डारों की सूचियो में मात्र उल्लेख ही है। एक स्वतन्त्र कथा पर ही यह दूतकाव्य भी आधारित है। ____ मानस सन्देश:-* अपने अन्तर्मन को दूत बनाकर इस दूतकाव्य मे सन्देश सम्प्रेषण सम्पादित हुआ है। काव्य के रचनाकार श्री वीर राघवाचार्य हैं। जिनका काल सन् १८५५ से १९२० तक का है। यह एक आधुनिक दूतकाव्य के रूप मे देखा जाता है।
मानस सन्देश:- सन १९५९ से १९१९ ई. के बीच में इस दूतकाव्य की श्री लक्ष्मण सूरि जी ने रचना की है। इस दूतकाव्य के रचनाकार पचयप्पा कालेज, मद्रास में संस्कृत के प्रोफेसर थे। इनके अनेक ग्रन्थ मद्रास से मुद्रित भी हो चुके है।
अड्यार पुस्तकालय के हस्तलिखित ग्रन्थों के सूचीपत्र भाग २ से. ८। मद्रास से प्रकाशित ओरियण्टल लाइब्रेरी, मद्रास के हस्तलिखित संस्कृत ग्रन्थों की सूचीपत्र के भाग ४ में ग्रन्थ सं. ४२९८ पर द्रष्टव्य, अप्रकाशित। ओरियण्टल हस्तलिखित पुस्तकालय, मद्रास के ग्रन्थ सं. २९६४ पर द्रष्टव्य अप्रकाशित। संस्कृत के सन्देश काव्य रामकुमारा आचार्य परिशिष्ट अप्रकाशित