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विकलता बढ़ती जाती है। अतः अब वह अपने मन के भावों को संस्कृत पद्यो मे निवद्ध कर पत्नी के नाम से दिल्ली मन्त्रणालय में भेजता है। उसके इस पत्र को परराष्ट्र मन्त्री पाकर उसकी पत्नी का पता लगाता है। तभी दोनो देशो के लोगो का अपने-अपने देश में प्रत्यावर्तन होता है। प्रवासी तथा उसकी पत्नी भारत रहना स्वीकार करते है। इसलिए भारत सरकार उसकी पत्नी को काशी पहुंचा देती है। वह प्रवासी अपने क्लेशों को भूलकर हर्ष का अनुभव करता है। काव्य के पूर्व निःश्वास में ८० तथा उत्तर नि५श्वास में २४ श्लोक है। काव्य अत्याधिक रोचक है।
मेघसन्देश विमर्श:-' कृष्णमाचार्य द्वारा यह दूतकाव्य रचा गया है। कालिदास के मेघूदत का परवर्ती काव्य साहित्य पर कितना प्रभाव पड़ा। प्रस्तुत काव्य इस प्रभाव का स्पष्ट परिचायक है।
बुद्धिसन्देश:- यह एक आधुनिक प्रकाशित रचना है इसके रचयिता सुब्रह्मण्य सूरि जी है। इस दूत काव्य मे बुद्धि द्वारा सन्देश सम्प्रेषित किया गया है।
भक्तिदूतम्:-' मात्र शृङ्गारिक काव्य के रूप में यह काव्य रचा गया है। काव्य के रचनाकार श्री कालिचरण है। काव्य का कथानक राम व कृष्ण भक्ति पर आधारित न होकर स्वयं काव्यकार के ही जीवन से सम्बन्धित है। कवि कालीचरण की प्रियतमा मुक्ति अपने प्रियतम से वियुक्त थी। इसीलिए मुक्ति के प्रति कवि ने भक्ति-दूती मुख से अपना सन्देश भेजा है। काव्य में कुल २३ श्लोक है। इस प्रकार काव्य अतिलघु होते हुए भी सुन्दर है।
संस्कृत साहित्य का इतिहास वाचस्पति गैरोलासंस्कृत साहित्य का इतिहास कृष्णमाचरियर पृ. सं. ३८० पैरा ३५२ श्री आर. एल मित्र के संस्कृत के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची के भाग ३, संख्या १०५१ पृ. २७ पर द्रष्टव्य (अप्रकाशित)