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कर्म सम्पादित करवाया गया। इसमे दो निःश्वास है पूर्व निःश्वास और उत्तर निश्वास। इस दूत काव्य मे कोई भारतीय व्यक्ति नौकरी करने के लिए अपनी पत्नी के साथ पेशावर जाता है। वहाँ एक सरकारी नौकरी करने लगता है। पेशावर के निकट जावरोद गाँव में उसका छोटा सा सुन्दर मकान था जिसकी दीवारो पर राम-राम नाम अंकित था। अतः वह श्री राम का भक्त था। एक बार उसे सरकारी काम से वाराणसी आना पड़ता है। इसी बीच पाकिस्तान
और भारत मे युद्ध छिड़ जाता है। और वह पाकिस्तान लौटने में असमर्थ होकर अपनी पत्नी-वियोग के दिनो को अत्यधिक कष्ट से व्यतीत करने लगता है। चिन्ता से व्यथित होकर विश्वनाथ मन्दिर आता है। वहाँ मण्डप मे भक्तो के साथ श्रीरामचन्द्र की कथा सुनता है। उस कथा प्रसंग में जब वह राम द्वारा सीता के पास हनुमान से भेजे गये सन्देश की बात वह सुनता है तो उसे भी अपनी पत्नी का स्मरण हो जाता और वह स्मरण कर ध्यानमग्न हो जाता है। आँखे खुलने पर वह सामने प्लवङ्ग (वानर) को देखता है। प्लवङ्ग को देखकर वह प्रसन्न हो जाता है और उसका सत्कार करता है। उस प्लवङ्ग से अपनी प्रिया के पास सन्देश पहुँचाने की प्रार्थना करता है। इसके साथ ही वह पाकिस्तान आने वाले मार्ग को विस्तार से बताता है तथा उस गन्तप्य मार्ग में जितने भी धार्मिक ऐतिहासिक स्थल और व्यक्ति हैं उनका दर्शन करने की भी उससे प्रार्थना करता है।
द्वितीय निःश्वास मे वह भारतीय व्यक्ति दूत बने प्लवंग या बन्दर से अपनी पत्नी के विरही रूप तथा उसकी मनोदशा का भी वर्णन करता है। इसप्रकार वह प्लवङ्ग उसकी प्रार्थना को स्वीकार करता है और वह पाकिस्तान जाने को तैयार हो जाता है। तभी राम की कथा समाप्त हो जाती है और भक्तों को देखकर वह प्लवङ्ग वहाँ से भाग जाता है। जब भक्तों की जयकार सुनकर प्रवासी का ध्यान टूटता है तो वह बहुत दुःखित हो जाता है। वह अत्यन्त खिन्न मन से अपने स्थान पर वापस आ जाता है। परन्तु उसकी