________________
नियुक्त किया गया है। काव्य अभी अप्रकाशित है। मात्र सूचीपत्र में उल्लेखित
पवनदूतम्:-' इस दूतकाव्य की रचना श्री जे. बी. पद्मनाभ ने की है इसमें भी पवन को ही दूत रूप में निश्चित किया गया है।
पिकदूतम्:-' यह दूतकाव्य अम्बिकाचरणदेव शर्मा द्वारा प्रणीत है। काव्य में सन्देश हारक का कार्य पिक द्वारा ही सम्पादित करवाया गया है। काव्य का सम्पूर्ण भाग उपलब्ध नहीं है। काव्य का कुछ अंश ही प्राप्त है। इस काव्य मे कोई गोपकान्ता श्रीकृष्ण के वियोग मे व्याकुल है। परन्तु वह कोयल की आवाज सुनती है तो प्रसन्न हो जाती हैं और वह कोयल द्वारा अपना सुमधुर सन्देश श्री कृष्ण के पास पहुँचाती है।
पिकदूतम्:-' एक और पिकदूतम् नामक काव्य मिलता है। इसके रचयिता के विषय में ज्ञान नहीं है फिर भी काव्य अत्युत्तम है। पिक को ही दूत बनाकर इस काव्य की रचना की गई है।
पिकसन्देश:- इस काव्य के रचयिता श्री रंगनाथाचार्य जी है। इस काव्य मे भी एक पिक को दूत के रूप में नियुक्त कर इसके द्वारा सन्देश कथन किया गया है। काव्य प्रकाशित है।
प्लवङ्गदूतम्:-' संस्कृत दूतकाव्य परम्परा का यह अत्याधुनिक दूतकाव्य है। इसके रचयिता प्रो. वनेश्वर पाठक है, जो राँची विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर अधिष्ठित है। इस काव्य में एक प्लवङ्ग के द्वारा दौत्य
संस्कृत साहित्य का इतिहास कृष्णमाचारियर, पृ. २७५ प्राच्य वाणी मन्दिर, कलकत्ता में काव्य के कुछ अंश उपलब्ध है (अप्रकाशित) श्री चिन्ताहरण चक्रवर्ती कलकत्ता के व्यक्तिगत पुस्तकालय में पाण्डुलिपि उपलब्ध हैं, (अप्रकाशित) सुबोध ग्रन्थमाला कार्यालय, रांची द्वारा प्रकाशित