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के पास भेजती है। कवि ने अपनी भावनाओं को काव्य में मूर्तरूप दे दिया है। इसलिए काव्य अत्यधिक चमत्कारपूर्ण बन गया है।
तुलसीदूतम् :-' कवि श्री वैद्यनाथ द्वारा प्रणीत एक और तुलसीदूतम् नामक दूत काव्य मिलता है। इसका रचना काल शक संवत १७०६ निर्धारित किया गया है। इस काव्य को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह काव्य प्रथम तुलसीदूतम् काव्य के पूरे-पूरे अनुकरण पर लिखा गया है। दोनों काव्यों की भाषा शैली रचना वैशिष्ट्य सब समान है। केवल काव्यकार और रचनाकाल से इन दोनो काव्यो की भिन्नता ज्ञात होती है। काव्य बहुत सुन्दर है पर इसका अभी तक पूर्णाश उपलब्ध नहीं हो पाया है।
दात्यूहसन्देश :-' इस सन्देशकाव्य के बारे में कुछ भी अधिक जानकारी नही प्राप्त है। काव्य के रचयिता श्रीनरायण कवि हैं।
दूतवाक्यम् :- दूतकाव्य परम्परा में आदिकाव्य 'रामायण' के बाद भी भास रचित इस दूतकाव्य की ही गणना है। काव्य की कथा विप्रलम्भ शृङ्गार पर आधारित न होकर राजनीति से सम्बन्धित है। युधिष्ठिर के दूत श्री कृष्ण दुर्योधन के दरबार में सन्धिप्रस्ताव हेतु जाते हैं। लेकिन दुर्योधन इसे नहीं स्वीकार करता है, प्रत्युत उन्हे अपमानित करता है। अतः श्रीकृष्ण उसे विनाश एवं महाभारत संग्राम की पूर्व सूचना देकर वापस चले आते हैं। काव्य बहुत सुन्दर है।'
प्राच्य वाणी मन्दिर कलकत्ता के ग्रन्थ संख्या १३७ के रूप में द्रष्टव्य। अप्रकाशित (आ. मेरूतुङ्गकृत जैन मेघदूतम् भूमिका मूल टीका हिन्दी अनुवाद आदि-डा. रविशंकर मिश्र पृ. सं. ४३। त्रावनकोर की संस्कृत हस्तलिखित ग्रन्थसूची की ग्रन्थ सं. १९५ पर द्रष्टव्य अप्रकाशित। प्रकाशित है पार्श्वनाथ विद्याश्रम ग्रन्थ माला ५१
संपादक-डा. सागरम