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काव्य मे भी चन्द्र के माध्यम से ही दौत्यकर्म सम्पादित करवाया गया है। काव्य अति लघु है। इस दूतकाव्य में मात्र २३ श्लोक है भाषा बहुत परिमार्जित है। इसमे मालिनी छन्द का प्रयोग किया गया है। काव्य लघु होते हुए भी अत्यन्त रमणीय है।
झंझावात :- इस दूत काव्य की रचना राष्ट्रीय भावना को लेकर की गई है। रचनाकार श्रुतिदेवशास्त्री है। इस काव्य की रचना सन् १९४२ मे होने वाले आन्दोलन के समय हुई थी। काव्य में झंझावात को रोककर उसे दूत बनाकर इसके द्वारा अपना सन्देश- सम्प्रेषण किया गया है। नेता जी सुभाष चन्द्रबोस इस काव्य के नायक है। तथा उन्होने द्वितीय महायुद्ध के दौरान बार्लिन मे रहकर भारतीय स्वतन्त्रता को प्राप्त करने मे अपना संघर्ष जारी रखा था। उसी समय नेता जी ने एक दिन रात्रि में उत्तर की ओर से आते हुए झंझावात को रोककर उसी के द्वारा भारत की जनता को अपना सन्देश सम्प्रेषित किया है।
तुलसीदूतम् :-' इस दूतकाव्य के रचनाकार त्रिलोचन कवि हैं। यह दूतकाव्य कृष्ण कथा पर आधारित है। जैसा कि इस काव्य के नाम से ही स्पष्ट है कि इसमे तुलसी वृक्ष द्वारा दौत्यकर्म सम्पादित करवाया गया है। काव्य में कुल ५५ श्लोक है। काव्य का रचनाकाल शक संवत १६३० है। काव्य की कथा इस प्रकार है कि कोई एक गोपी श्रीकृष्ण के विरह से संतप्त होकर वृन्दावन में प्रवेश करती है। वहाँ एक तुलसी के वृक्ष को देखकर अत्यधिक दुःख सन्तप्त हो जाती है और उसी द्वारा अपना सन्देश श्रीकृष्ण
विद्याश्रम ग्रन्थमाला ५ संपादक सागर मल जैन आ. मेरूतुङ्ग कृत जैन मेघदूतम् ( भूमिका मूल टीका हिन्दी अनुवाद सहित डा. रविशंकर मिश्र पृ. सं. ४२-४३ संस्कृत साहित्य परिषद् कलकत्ता के पुस्तकालय में पाण्डुलिपि उपलब्ध। प्राच्य वाणी मन्दिर, कलकत्ता के ग्रन्थ सूची पत्र के ग्रन्थ संख्या १३७ में द्रष्टव्य । अप्रकाशित