________________
कथावस्तु भी लगभग मेघूदत के ही समान है। यद्यपि नाम एवं स्वरूप से यह काव्य एक सन्देश काव्य सदृश नहीं प्रतीत होता, पर वस्तुतः यह काव्य भी एक सन्देश काव्य ही है। मात्र २२ श्लोक के इस अतिलघुकाय काव्य मे विभिन्न सुमधुर कर्णप्रिय छन्दों को प्रयुक्त कर कवि ने इस काव्य को एक सफल सन्देशकाव्य का स्वरूप प्रदान कर दिया है। महाकाव्यो तथा मेघदूतकाव्य के मध्य मे भावपक्ष एवं कलापक्ष इन दोनो दृष्टियो से यह काव्य एक अन्तरिम श्रृंखला का कार्य करता है। इस प्रकार संस्कृत के सन्देशकाव्यो के विकास के इतिहास मे इस घटखर्पर काव्य के महत्व को अस्वीकृत नही किया जा सकता है। एक पुस्तक में 'घटखर्परकाव्यम्' न लिखकर 'घटकपर' नाम का काव्य मिलता है, जिसमे २१ पद्यों का छोटा से संग्रह है। इस दूतकाव्य मे वर्षाकाल के प्रारम्भ मे एक वियोगिनी द्वारा अपने प्रियतम के पास भेजे गये सन्देश का वर्णन है। इसमें कवि ने यमक के विषय मे गर्वोक्ति की है:- जीयेय येन कविना यमकैः परेण तस्मै वहेयमुदकं घटकपरेण। यमक के चमत्कार के अतिरिक्त घटकर्पर एक साधारण कोटि की रचना है। शैली की कृत्रिमता और शाब्दिक आडम्बर का आग्रह इसे कालिदास के बाद की रचना सिद्ध करते है। लेकिन जाकोबी का अनुमान है कि यह मेघदूत से पहले की रचना है क्योकि यदि बाद मे लिखा गया होता तो लेखक को गर्वोक्ति करने का साहस नहीं होता। परन्तु यह कथन सर्वथा निराधार है। इस काव्य की शैली और शब्दों का प्रयोग इसे कालिदास के 'मेघदूतम' से बाद की रचना सिद्ध करते हैं।
चन्द्रदूतम् :-' दूतकाव्य की परम्परा में यह अपने नाम का दूसरा दूतकाव्य है। इस काव्य के काव्यकार जम्बूकवि श्री विनयप्रभु जी हैं। इस
___ संस्कृत गीतकाव्य का विकास-डा. परमानन्द शास्त्री
डा. जे. बी. चौधरी द्वारा सन् १९४१ में कलकत्ता से प्रकाशित (पार्श्वनाथ