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________________ गरूड़ सन्देश :- अपने नाम का यह दूसरा दूतकाव्य श्री नृसिंहाचार्य द्वारा प्रणीत है। जो कि तिरूपति स्थान के हैं। इस काव्य के बारे मे कोई भी अन्य सामग्री नही प्राप्त होती है। गोपीदूतम् :-' यह दूतकाव्य कृष्ण कथा पर आधारित है। इस काव्य के रचनाकार श्री लम्बोदर वैद्य जी है। इस काव्य में गोपिकाओं ने धूलि के माध्यम से श्रीकृष्ण के पास सन्देश भेजा है। काव्य का नामकरण दूत पर आधारित न होकर दूत सम्प्रेषण कर्ता के नाम पर आधारित है। कथा कुछ इस प्रकार है कि मथुरा चले जाने पर गोपियाँ श्रीकृष्ण के वियोग मे व्याकुल हो उठी। मथुरा जाते समय गोपियों ने श्रीकृष्ण का अनुगमन भी किया पर निष्फल होकर वापस आ गयीं। उस समय श्रीकृष्ण के रथ से उड़ती हुई धूलि को देख उन गोपियो ने उसी धूलि को ही अपना दूत बनाकर श्रीकृष्ण के पास भेजकर अपना सन्देश भेजा यथा गते गोपीनाथे मधुपुरमितौ गोपभवनाद् गता यावद्धूली रथचरणजा नेत्रपदवीम् । स्थितास्तावल्लेख्या इव विरहतो दुःखविधुरा निवृत्ता निष्पेतुः पथिषु शतशो गोपवनिताः । । १ ― घटखर्परकाव्यम् :-' संस्कृत के दूतकाव्यों मे इस काव्य का स्थान सर्वप्रथम है। यह दूतकाव्य मेघ सन्देश से भी पहले का लिखा हुआ है। २ 32 काव्य संग्रह : जीवानन्द विद्यासागर जिल्द ३, पृ. ५०७-५३०, कलकत्ता १८८८ अप्रकाशित | पार्श्वनाथ विद्याश्रम ग्रन्थमाला ५१ -संपादक डा. सागरमल जैन आचार्य मेरुतुङ्ग कृत जैनमेघदूतम् भूमिका, मूलटीका एवं हिन्दी अनुवाद सहित पृ. सं. ४०
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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