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कीदूतम् यह दूतकाव्य श्री कृष्ण की कथा पर अधारित है । यह श्री रामगोपाल द्वारा रचा गया है। इसमें दूत सम्प्रेषण का कार्य एक कीर अर्थात् शुक के माध्यम से करवाया जाता है। श्री कृष्ण से वृन्दावन चले जाने पर गोपियाँ उनके वियोग मे बहुत व्याकुल है और अपनी विरह व्यथा का सन्देश एक कीर के माध्यम से श्री कृष्ण तक पहुँचाती है। काव्य मे १०४ श्लोक है। काव्य अद्यावधि अप्रकाशित है।
कीरदूतम् :-' यह दूतकाव्य वेदान्तदेशिक के पुत्र वरदाचार्य द्वारा रचा गया है। कीरदूत काव्य अप्राप्त है । परन्तु मैसूर की गुरू परम्परा मे इसका उल्लेख मिलता है।
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कोकिलदूतम् :- कृष्ण भक्ति को लेकर प्रस्तुत यह दूतकाव्य कवि श्री हरिदास जी द्वारा रचा गया है। काव्य का रचनाकाल शक सं. १७७७ है। काव्य में १०० श्लोक है। काव्य मन्दाक्रान्ता मे रचा गया है। दूतकाव्य की कथावस्तु निम्न प्रकार है:- श्री राधा के हृदय मे विरहव्यथा अति मार्मिकता से समाविष्ट हो चुकी थी, क्योकि उनके प्रियतम श्रीकृष्ण उन्हें छोड़कर मथुरा को चले गये थे। फलतः मन को शान्त करने के उद्देश्य से राधा एक कोकिल को ही अपने प्रियतम के पास सन्देश देकर भेजती है। इस काव्य में कवि की निपुणता पूर्ण रूप से प्रतिभासित होती है ।
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कोकिलसन्देश :- * दूतकाव्य परम्परा में अपने नाम का यह दूसरा दूत काव्य है। इस काव्य की रचना श्री नरसिंह कवि ने की है। इसकी कथा
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श्री हरिप्रसाद शास्त्री द्वारा संकलित संस्कृत हस्तलिखित ग्रन्थो की सूची के
भाग १, पृ. ३९, संख्या ६७ पर द्रष्टव्य
संस्कृत के सन्देश काव्य- रामकुमार आचार्य परिशिष्ट २ ।
कालिदास की मणिमाला व्याख्यासहित सुधामय प्रमाणित द्वारा कलकत्ता से बंगीय सं. १३९१ में प्रकाशित ।
अधार पुस्तकालय के हस्तलिखित सूचीपत्र के द्वितीय भाग मे