________________
29
इस दूतकाव्य की कथा इस प्रकार है कि राधा कृष्ण के वियोग में बहुत व्याकुल हो उठती है । अतः काक को अपना दूत बनाकर (उसके द्वारा अपनाविरह सन्देश श्री कृष्ण के पास पहुँचाती हैं।
काव्य का रचनाकाल शक सं. १८११ है। काव्य बहुत ही सुन्दर है। काव्य सौष्ठव की दृष्टि से काव्य पूर्णता को प्राप्त है । कवि ने अपनी निपुणता का पूरा समायोजन किया है। काक दर्शनोपरान्त श्री राधा के मन में दो तरह की भावनाएँ उत्पन्न होने लगता है कि या तो यह काक मेरा उपकार ही करेगा या फिर अपकार अर्थात नाश ही करेगा। काक मे यह दोनों शुभ और अशुभ सूचक भाव सन्निविष्ट है । यथा
काकोदरो यादृश एव जन्तोः काकध्वजो वा जलसम्भवस्य । काकोलरूपः किमु नाशकोऽत्र काकोऽयमागान्मम सन्निधाने । । इस दूतकाव्य मे अनेक छन्दो का प्रयोग किया गया है।
काकदूतम् : इस काव्य के रचयिता के विषय में कुछ भी ज्ञान नहीं है। मात्र 'सहृदय' नामक मासिक पत्रिका के अंक मे इस काव्य का उल्लेख मिलता है।
२ :
काकदूतम् इस काव्य के रचनाकार के विषय में
भी ज्ञात
कुछ
नही है। इसमें कारागार मे पड़ा एक ब्राह्मण काक के द्वारा अपनी प्रेयसी कादम्बरी के पास अपना सन्देश भेजता है । यह एक व्यंग्यपरक दूतकाव्य है। समाज को नैतिकता की शिक्षा देने के विचार से रचा गया है।
बंगीयदूतकाव्येतिहास डा. जे. बी. चौधरी प्र. ९७
संस्कृत साहित्य का इतिहास - कृष्णमाचारियर, पृ. सं. ३६५