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व्योमव्याजादहनि कमनः पट्टिकां सम्प्रमृज्य स्फूर्जल्लक्ष्मालकशशिखतीप्रात्रमादाय रात्रौ । रुग्लेखिन्या गणयति गृणान् यस्य नक्षत्रलक्षादङ्कास्तन्वन्न खलु भवतेऽद्यापि तेषामिवोक्ताम् ।।
अर्थात् ब्रह्मा प्रतिदिन प्रभुनेमिनाथ के गुणगणन मे ही व्यस्त रहते हैं दिन मे आकाश रूपी पट्टिका को मार्जित कर रात्रि में प्रकाशित चन्द्रमा की कलङ्करूपी स्याही और चन्द्रमा रूपी दावात तथा उसकी किरण रूपी लेखनी से तारों रूपी अंको के लिखने के व्याज से प्रभु के गुणों को गिनते हैं लेकिन आज भी उन गुणों की इयत्ता नहीं प्राप्त कर सके।