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________________ 210 (३) उपमान आचार्य मेरूतुङ्ग ने जैनमेघदूतम् मे जीवन के तथ्य मूल्य को अधिक गहराई से समझाने के लिए तथा उसके सौन्दर्य बोध के उत्कर्ष रूप दिखाने के लिए अप्रस्तुत विधान का प्रयोग किया है। कवि ने अपने काव्य मे दार्शनिक प्राकृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, पौराणिक आदि विभिन्न प्रकार के उपमानो का प्रयोग किया है। कवि ने अप्रस्तुत विधान का प्रयोग व्यावहारिक एवं जन जीवन से ग्रहण किया है अधिकांश अप्रस्तुत विधान का प्रयोग पौराणिक तथान नवीन दोनों रूपों में मिलता है। इस प्रकार स्थूल उपमानों का भी प्रयोग मिलता है। दार्शनिक उपमानो का प्रयोग आचार्य मेरूतुङ्ग ने अनेक स्थलों पर अत्यन्त निपुणता से किया है। इसप्रकार के अप्रस्तु विधानों में विचित्र प्रकार की सजीवता की झलक आती है। निम्नलिखित श्लोको मे दार्शनिक उपमानों का प्रयोग किया गया है:अन्या लोकोत्तर-...... ........ बबन्ध' एक दूसरी कृष्ण की पत्नी ने हंसते हुए संक्षेप में यह कहते हुए कि-हे लोकोत्तर। तुम मूर्तिमान् रागपाश से बँधे होने पर मोक्ष को कैसे प्राप्त करोगे? लाल कमलो की माला को मेखला के बहाने श्री नेमि के कटि प्रदेश में ऐसे बाँध दिया जैसे प्रकृति आत्मा को बाँध लेती है। यहाँ पर कवि ने कितनी सुन्दर दार्शनिक उपमा प्रस्तुत की है। कि जिस प्रकार प्रकृति आत्मा को बाँध लेती है, उसी प्रकार श्री कृष्ण की पत्नी ने उस माला को श्री नेमि के कटिप्रदेश में बांध दिया है। जैनमेघदूतम् - २/२१
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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