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उद्यन्मोहप्रसवरजसा चाम्बरं पूरयन्तोऽ
भीकाभीष्टा मलयमरुतः कामवाहा: प्रशंसुः । '
वसन्त के आने पर नये नये कपोलों एवं सुन्दर सुन्दर पत्तो से मुक्त वृक्षराग पराग रूपी लक्ष्मी के साक्षात् निवास की तरह शोभित हो रहे थे। मन में राग ( काम) की उत्पन्न करने वाले फूलों की रज अर्थात पुष्प पराग कणों से आकाश को व्याप्त करती हुई कामियो के लिए प्रिय, मलयाचल की हवाये स्वेच्छा पूर्वक बह रही थी अर्थात् ऐसा लग रहा था कि कामदेव के घोडे स्वेच्छापूर्वक विचरण करते हुए काम रूपी फूलो के राग रूपी धूल से पूरे आकाश मण्डल को व्याप्त कर रहे हैं।
संक्रीडन्तः
दलकिशलयामुक्तमङ्गल्यदाम्नः ।।'
मनोहर कूजन (शब्द करते हुए राजहंस तालाबों में चारो तरफ खेल रहे थे, जो काम रूपी राजा के द्वारा शत्रुनगरी में प्रवेश के समय बजाये जाने वाले तोतो की पक्तियाँ नये नये पत्तो से बाँधी गई वन्दनवार की शोभा को . धारण कर रही थी। जैनमेघदूतम् में कवि ने गंध एवं स्पर्श बिम्ब का भी प्रयोग किया है। निम्न श्लोक मे गंध बिम्ब द्रष्टव्य है -
ध्यात्वैवं सा नवधनधृता भूरिवोष्णायमाना युक्तायुक्तं समदमदनावेशतोऽविन्दमाना । अस्त्रासारं पुरु विसृजती वारि कादम्बिनीव
हीना दुःखादथ दकमुचं मुग्धवाचेत्युवाच । ।
स्पर्श बिम्ब का प्रयोग निम्नलिखित श्लोक में देखिए
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जैनमेघदूतम् २/२ जै