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सन्देश लेकर श्री राम के समक्ष हनुमान उपस्थित होते हैं और श्री राम को सीता देवी का सन्देश सुनाते है।'
इस प्रकार प्रचीन संस्कृत साहित्य मे पशु-पक्षियो द्वारा दूत सम्प्रेषण होता था जिसे देखकर परवर्ती कवियो ने भी अनेक दूत काव्य की रचना की जिसमे दूत वाहक के रूप मे पशु-पक्षियों, अचेतन पदार्थो का चुनाव किया। प्राचीन काल मे पशु पक्षी को नायक बनाकर कथा लिखी गई है उदाहरणार्थ हितोपदेश तथा पञ्चतन्त्र। संस्कृत साहित्य के अतिरिक्त भारतीय लोक गीतो मे भी पक्षियो द्वारा पत्र भेजने की परम्परा थी। विरहणी दूर देश में गये पति की याद कर उसे सन्देश काक और अन्य पक्षियो द्वारा ही भेजती थीं।
इस प्रकार काव्य की परम्परा वेद से लेकर वाल्मीकि रामायण, श्रीमद्भागवत, जैन ग्रन्थ, बौद्ध ग्रन्थ तक में मिलती हैं।
वाल्मीकि रामायण के बाद श्री भास रचित दूतवाक्यम् और दूतघटोत्कच का भी स्थान मिलता है।
___ अतः परवर्ती कवियो ने प्राचीन संस्कृत साहित्य मे दूत-सम्प्रेषण कार्य से प्रेरणा पाकर अनेक दूतकाव्यों की रचना की है। जिसमें सर्वप्रथम कालिदास का मेघदूतम् है।
संस्कृत के दूतकाव्यों का आदिमग्रन्थ महाकवि कालिदास का मेघदूतम् है। जिसमे धनपति कुबेर के शाप से निर्वासित एक विरही यक्ष की मनोव्यथा का मार्मिक चित्रण है। मेघदूत कालिदास के अन्तः प्रकृति तथा बाह्य प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षण का भव्य भण्डार है। यहाँ बाह्य प्रकृति को जो प्रधानता
पउमचरियं, सुन्दरकाण्ड ५४/३-११ संस्कृत साहित्य का इतिहास प्र. सं. २२७
- आ. बल्देव उपाध्याय