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इस प्रकार हनुमान की इस महागर्जना को सुनकर श्रीराम हर्षोल्लासित हो, सीता के लिए उनको अपना सन्देश देते है। राम का सन्देश पाकर पुलकितबाहु हनुमान सीता की खोज मे चल पड़े। लंका पहुँचने पर निर्धूम आग सदृश बाये हाथ पर मुँह रखे हुए, खुले बाल, आँसू बहाती हुई सीता जी का उन्हें दर्शन होता है।
देवी सीता की विरह कातरता को देखकर हनुमान जी अत्यधिक दुखित होते है और वे सीताजी के समक्ष तुरन्त प्रस्तुत हो जाते है। उन्हें अपने सम्मुख देखकर सीताजी ने हनुमान से पूछा
कत्थ पसे सुन्दर । दिट्ठो ते लक्खणेण सह पउमो निरूवहअंगोवंगो? किं व महासोगसन्निहिओ ? ।। अह वा किं मह विरहे, सिढिलीभूयस्य वियलिओरपणे लद्धो भद्द! तुमे कि अंगुलिमुद्दओ एसो ? ' ।।
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यह सुनकर हनुमान सीता जी को प्रणाम कर श्रीराम की कुशलवार्ता के साथ उनकी दशा का भी वर्णन करते हैं। हनुमान श्री राम की कुशलवार्ता कह कर, भोजनकर सीता देवी से कहते हैं.
निव्क भोयणविही विन्नविया मारूईण जणयसुया ।
आरूहसु मज्झ खन्धे, नेमि तहिं जत्थ तुह दइओ।। '
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उस सन्दर्भ मे सीता देवी कुलवधू के गुणों का वर्णन करती है, अपना सन्देश भी श्री राम को देने के लिए कहती है। इस प्रकार उनका
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पउमचरियं, सुन्दरकाण्ड ५३ / २१-२६
पउमचरियं, सुन्दरकाण्ड ५३ / २७-३९ पउमचरियं, सुन्दरकाण्ड ५३ / ६१-६२ पउमचरियं, सुन्दरकाण्ड ५३/६४-७२