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___ जैसा कि काव्यशास्त्राकार ने रूपक का लक्षण निरूपित करते हुए कहा है:- 'तद्रूपकमभेदो य उपमानोपमयेयोः' अर्थात् उपमान और उपमेय का अभेद रूपक अलंकार है।
निम्नलिखित श्लोक रूपक अलंकार का एक सुन्दर निदर्शन है। इसमे रूपक अलंकार का लक्षण पूर्णतः घटित हो रहा है -
हारावाप्तीरदधत हृदीवानने पौरनार्यो योद्भुर्गच्छच्छदवदपतन् फाल्गुनेऽत्राणि पाणेः। प्राकाराग्र्याण्यपि विजगलुर्गण्डशैला इवानेः पूच्चक्रे च प्रतिरुतनिभाद् भूरिभीरुज्जयन्तः।।'
अर्थात् नगर की स्त्रियो ने वक्षस्थल पर धारित हार की तरह मुख मे हा हा शब्द धारण किया अर्थात् वे हाहाकार करने लगी फाल्गुन मास में वृक्षो के पत्तो की तरह सैनिकों के हाथो से अस्त्र गिरने लगे। पर्वत की चोटियों की तरह महलो के शिखर ढहने लगे, शंख की ध्वनि से अति व्याकुल होकर रैवतक भी प्रतिध्वनि के बहाने नाद करने लगा अर्थात् शंख की प्रतिध्वनि उस पर्वत से आने लगी।
यहाँ उपमान हार और उपमेय हाहाकार शब्द उपमान फाल्गुन मास के पत्ते की तरह उपमेय शिखर का ढहना आदि मे उपमान उपमेय का अभेद वर्णन है, अतः रूपक अलंकार है। इसी प्रकार अनेक स्थलों पर रूपक अलंकार दिग्दर्शित होता है।
काव्यप्रकाश १०/९३ जैनमेघदूतम् १/३७