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जिसका परिणाम सदैव सुखकारी हो मै कर्मपाश से बँधे हुए समस्त प्राणियो को इन्ही पशुओ के समान मुक्त करूगाँ।
यहाँ समस्त प्राणियो को पशुओं के समान मुक्त करना चाहते हैं। प्रस्तुत श्लोक मे समस्त प्राणियो और पशुओं मे सार्धम्य स्थापित किये जाने के कारण उपमा अलङ्कार है ।
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निम्नलिखित श्लोक में सृष्टिपदार्थीय और व्यावहारिक उपमाओ का सुन्दर प्रयोग दृष्टिगत होता है -
या क्षैरेयीमिव नवरसां नाथा वीवाहकाले
सारस्नेहामपि सुशिशिरां नाग्रहो पाणिनाऽपि । सा किं कामानलतपनतोऽतीव वाष्पायमाणा
ऽन्योच्छिष्टा नवरूचिभृताऽप्यद्य न स्वीक्रियते । । '
अर्थात् हे नाथ। विवाह के समय मे नवीन तथा स्थिर प्रेमवाली जिस मुझको आपने मधुर तथा घृतयुक्त किन्तु शीतल खीर की तरह हाथ से भी नही छुआ था, कामाग्नि से अत्यन्त उष्ण हो एवं वाष्पपूरितं एवं अनन्यमुक्ता उसी मुझको नवीन कान्ति वाले आप आज क्यों नहीं स्वीकार करते ।
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यहाँ विवाह के समय मे नवीन तथा स्थिर बुद्धि वाली राजीमती का साधर्म्य मधुर तथा घृतयुक्त किन्तु शीतल खीर से (सृष्टिपदार्थीय) से की गई है अतः यहाॅ उपमालङ्कार है।
रूपक अलंकार के प्रयोग से काव्य रमणीय हो उठा है।
वही ४/१५