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निम्नलिखित श्लोक मे दार्शनिक उपमा का सुन्दर निदर्शन है
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अन्या लोकोत्तर ! तनुमता रागपाशेन बद्धो
मोक्षं गासे कथमिति ? मितं सस्मितं भाषमाणा । व्यक्तं रक्तोत्पलविरचितेनैव दाम्ना कटीरे
काञ्चीव्याजात्प्रकृतिरिव तं चेतनेशं बबन्ध । । '
अर्थात् एक दूसरी कृष्ण की पत्नी ने हँसते हुए संक्षेप में यह कहते हुए कि हे लोकोत्तर । तुम मूर्तिमान रागपाश से बँधे होने पर मोक्ष को कैसे प्राप्त करोगे ? लाल कमलो की माला को मेखला के बहाने श्री नेमि के कटि प्रदेश मे ऐसे बाँध दिया जैसे प्रकृति आत्मा को बॉध लेती है।
यहाँ कवि ने दार्शनिक उपमान 'प्रकृति आत्मा को बाँध देती है का प्रयोग किया है।
एक अन्य स्थल पर आध्यात्मिक उपमान की स्पष्ट झलक प्रतीत होती
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नर्तेऽर्तीनां नियतमवरावावरीयां तपस्यां
यस्योदर्कः सततसुखकृत्यमर्थ्यं सतां तत् ।
दामत्कर्मप्रसित भविनो मोचयिष्ये चरीन् वां
नेमिः प्रत्यादिशदिति हरिं भूरि निर्बधयन्तम् ।। '
अर्थात बार-बार आग्रह करते हुए श्रीकृष्ण को श्री नेमि ने यह कहकर मना कर दिया की हे कृष्ण। इस तपस्या (दीक्षा) के बिना स्त्री निश्चित ही बाधाओं को दूर नहीं कर सकती। सज्जनों का वही कार्य प्रशंसनीय होता है
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जैनमेघदूतम् २/२१
जैनमेघदूतम् ३/४८