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वर्गद्वितीय बहुला स्वल्पप्राणाक्षरा च सुविधेया।
अर्थात वैदर्भी रीति अथवा ललित पद रचना इस प्रकार की हुआ करती है जिसमे समस्त पदावली का प्रयोग नहीं हुआ करता। जहाँ एकाध पद समस्त हो जाय तो कोई हानि नहीं। जिसमें श्लेषादि दसो शब्द गुण विराजमान रहा करते है, जिसमें द्वितीय वर्ग अर्थात च वर्ग के वर्गों का बाहुल्य सुन्दर लगा करता है और जिसमें ऐसे वर्ण रहा करते हैं जो कि स्वल्प प्रयत्न से उच्चरित हो सकते है।
आचार्य भामह के अनुसार श्लेष, समता, प्रसाद, मधुरता, सुकुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारता, कान्ति, ओज, समाधि इन दस गुणों का वैदर्भी रीति मे होना आवश्यक है
श्लेषः प्रसादः समता माधुर्यं सुकुमारता अर्थव्यक्तिरुदारत्वमोजः कान्तिसमाधयः। इति वैदर्भमार्गस्य प्राणा दश गुणाः स्मृता एषां विपर्ययः प्रायो दृश्यते गौडवरमीनि।'
गौडी वह रीति है जिसे ओजगुण के अभिव्यञ्जक वर्णो से पूर्ण, समास- प्रचुर उद्भट रचना कहा गया है।
ओजः प्रकाशकैर्वर्णबन्ध आडम्बरः पुनः।।३।।
समास बहुला गौडी'- रीतिवाद के प्रवर्तक आचार्य वामन के अनुसार गौडी रीति का स्वरूप यह है -
'समस्ताप्युद्भटपदामोजा कान्ति गुणान्विताम् ।
काव्यादर्श १/४१/४२ साहित्यदर्पण ९/३