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श्रीकृष्ण ने अपनी भुजा का झुक जाना एक दैव योगमाना श्री नेमि ने इनके भावो को जानकर वज्र को भी तृण बना देने वाले अपने वाम हस्त को श्रीकृष्ण की ओर बढ़ा दिया। अत्याधिक प्रयास के पश्चात् श्रीकृष्ण श्रीनेमि की भुजा को झुका नही पाये
अद्रेः शाखा मरुदिव मनाक्चालयित्वा सलीलं स्वामी बाहां हरिमिव हरिं दोलयामास विष्वक् । तुल्यैगोंत्राज्जयजयरवोद्घोषपूर्वं च मुक्ताः सिद्धस्वार्थं दिवि सुमनसस्तं तृषेवाभ्यपप्तन् । '
अर्थात् जिस प्रकार वायु वृक्ष की शाखा को हिलाकर उस पर बैठे हुए बन्दर को भी कम्पित कर देता है, उसी प्रकार श्री नेमि प्रभु ने क्रीडा-पूर्वक अपनी बाहु को थोड़ा सा हिलाकर श्री कृष्ण को झकझेर दिया। उस समय आकाश में जयकार पूर्वक देवताओ द्वारा प्रक्षिप्त पुष्प श्रीनेमि के पास उसीप्रकार आ गिरे जैसे अपने गोत्र से निष्कासित मनुष्य स्वार्थसिद्धि हेतु आश्रयदाता की शरण मे, जयकार करते हुए जाता है।
इस प्रकार जैनमेघदूतम् में माधुर्य गुण सर्वत्र विद्यमान है। ओज गुण का प्रयोग अत्यल्प हुआ है। इन दोनों गुणों से काव्य जीवन्त हो उठा है। माधुर्य गुण का विप्रलम्भ शृङ्गार और शान्त रस में प्रयोग कर कवि ने काव्य को अत्यधिक रमणीय बना दिया है। माधुर्य ओजगुण की अपेक्षा प्रसाद गुण की उपस्थिति प्रायः नगण्य ही है किन्तु कहीं कहीं उनकी झलक दिखलाई देती है जैसे -
"उचैश्चक्रुः प्रतिदिशमविस्पन्दमाकन्दनाग
स्कन्धारूढा कलकलरवान् कोकिलाः कान्तकण्ठाः ।
जैनमेघदूतम् १ / ४८
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