________________
170
संनयन्तं त्रिभुवनजये कामराजं जिगीषून् नग्नप्रष्ठा इव यतिभटान् धीरमाह्वानयन्तः।।'
अर्थात् निश्चल आम्रवृक्ष की डालियों पर बैठे मधुर कण्ठ वाले कोटि कोकिल पक्षी सभी दिशाओ मे उच्च स्वर से ध्वनित कर रहे थे, जैसे तीनों लोक के विजय के लिए तैयार कामदेव को जीतने की इच्दा वाले यतिसमूह रूपी योद्धाओं को युद्ध में दन्दुभि बजाने वाले कामदेव के श्रेष्ठ चारण युद्ध के लिए ललकार रहे हो- कि अब कामदेव आ रहे हैं युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।
एक अन्य स्थल पर भी प्रसाद गुण की झलक दृष्टिगत होती है:नीलेनीले शितिलपनयन् वर्षयत्यश्रुवर्षन् गर्जत्यस्मिन् पटु कटु रटन् विद्ययत्यौष्ण्यमिर्यन। वर्षास्वेवं प्रभवति शुचे विप्रलब्धोऽम्बुवाहे वामावर्गः प्रकृतिकुहनः स्पर्धतेऽनेन युक्तम् ।।
अर्थात वर्षाकाल मे स्वभाव से ईर्ष्यालु विरहिणी स्त्रियाँ अपने शोक को उत्पन्न करने वाले मेघ से जो ईर्ष्या करती है, वह ठीक ही है। (क्योंकि) मेघ के नीलतुल्य श्यामवर्ण वाला होने पर वे (विरहिणी स्त्रियाँ) भी मुख को श्याम बना लेती है, जब वह (मेघ) बरसता है तब वे (विरहिणी स्त्रियाँ भी अश्रु बरसाती हैं, जब वह (मेघ) गरजता है तो विरहिणी स्त्रियाँ चातुर्य पूर्ण कटु विलाप करती है और जब वह (मेघ) बिजली चमकाता है तो (विरहिणी स्त्रियाँ) भी उष्णनिःश्वास छोड़ती है। निम्नलिखित अन्य स्थलों पर भी प्रसाद गुण की प्रतीति होती है:
जैनमेघदूतम् २/६ । जैनमेघदूतम् १/६