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पुण्यं पृथ्वीधरवरमथो रैवतं स्वीचकार ।।
एक और उदाहरण देखिए जिसमें विरहिणी स्त्रियो के होने वाली काम व्यथा ध्वनि रूप में अभिव्याञ्जित हो रही है -
नीलेनीले शितिलपनयन् वर्षयत्यनुवर्षन् गर्जत्यस्मिन् पटु कटु रटन् विद्ययत्यौष्ण्यमिर्यन् । वर्षास्वेवं प्रभवति शुचे विप्रलब्धोऽम्बुवाहे वाम वर्गः प्रकृतिकुहनः स्पर्धतेऽनेन युक्तम् ।
अर्थात् कवि का व्याकरण, दर्शन मनोविज्ञान, ध्वनि विज्ञान, काव्य शास्त्र आदि विषयों पर अधिकार है। कवि ने दुःखाकर्तुम् और सुखाकुर्वतः दो नवीन व्याकरण का प्रयोग किया है। इसी प्रकार कुछ नवीन ऐसे शब्दों की रचना की है जिनका भाव समझ पाना अत्यधिक कठिन है यथा शुङ्गिका (२/१५) प्राभृत', उलूल ध्वनि', क्षैरेयी आदि ऐसे शब्द है जिनका अर्थ सरलता पूर्वक निकाल पाना अति दुश्शक है। कुछ ऐसे भी शब्द है जिनका कवि ने नवीन अर्थ निकाला है जैसे बर्कर' का क्रीड़ा से, हल्लीसकं का स्त्रियो का नृत्य विशेष से और उषा" को रात्रि के समान कहा है। ऐसा प्रतीत
जैनमेघदूतम् १/१ जैनमेघदूतम् १/६ जैनमेघदूतम् ३/१७ जैनमेघदूतम् २/१५ जैनमेघदूतम् २/३७ जैनमेघदूतम् ३/२८ जैनमेघदूतम् ४/१५ जैनमेघदूतम् २/१२ जैनमेघदूतम् २/१६ जैनमेघदूतम् ४/३४