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चातुर्य पूर्ण कटु विलाप करती है और जब बिजली चमकती है तो वे भी उष्णनिःश्वास छोड़ती हैं।
___ उपर्युक्त श्लोक मे अनुभाव की ४ श्रेणियों में से 'वागारम्भक' नामक श्रेणी का प्रयोग है जिसमें आलाप विलाप संलाप आदि पाया जाता है। यहाँ भी मेघ जब गरजता है तो विरहिणी विलाप करती हैं। अश्रु आदि सात्त्विक भाव है जो अनुभाव के अन्तर्गत आते हैं। यहाँ विरहिणी स्त्रियों मे मुख का श्यामवर्ण हो जाना तथा उष्ण निःश्वास आदि छोड़ना इत्यादि उनके हृदय मे उद्बद्ध रत्यादि भावो को बाहर प्रकाशित करने वाले अङ्गादि व्यापार हैं जो अनुभाव की संज्ञा प्राप्त करते है। जैनमेघदूतम् मे 'प्रलय' नामक सात्त्विक भाव भी प्राप्त होते है, प्रलय का तात्पर्य है ज्ञानशून्यता। ज्ञानशून्यता का परिचय तो राजीमती के कथनो मे मिलता है, वह अचेतन मेघ को अपना दूत बनाती है यह उसकी ज्ञानशून्यता ही कही जायेगी। ज्ञानशून्यता का दर्शन निम्न लिखित श्लोक में होता है
अर्थोक्ताया स्वचरितततेः स्वप्नवत्साऽथ सद्याः संजानव्यप्यनहितधीर्युष्टसुप्तोत्थितेव। संपश्यन्ती विरहविवशा शून्यमाशाः कदाशापाशामुक्ता मुदिरमुदितं पर्यभाषिष्ट भूयः।।'
अर्थात् इसके बाद प्रातः काल सोकर उठी हुई सी, असावधान बुद्धि वाली विरह से व्याकुल कुत्सित आशा बन्धन से बाँधी हुई तथा सभी दिशाओ को शून्य सी देखती हुई राजीमती अपनी आधी कही हुई कथा का स्मरण करती हुई मेघ से पुनः बोली।
जैनमेघदतम् २/२६