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(ख) जैनमेघदूतम् में रस-विमर्श
आचार्य मेरूतुङ्ग ने जैनमेघदूतम् में मुख्य रूप से दो ही रसों का प्रयोग किया है (१) शृङ्गार रस तथा इसके दोनों भेदों (क) विप्रलम्भ शृङ्गार (ख) संयोग शृङ्गार रस (२) शान्त रस। इन्होंने जैनमेघदूतम् में रस योजना की सफल निष्पत्ति के लिए रस के सभी तत्त्वों का कुशलता से समावेश किया है। सर्वप्रथम हम शृङ्गार रस को लेते हैं। शृङ्गार का अभिप्राय है जो कामोद्भेद से संभूत हो। जैनमेघदूतम् की नायिका राजीमती कामोद्भेद से संभूत है, अतः इसे हम शृङ्गार रस की कोटि मे रख सकते है । शृङ्गार रस के आलम्बन के विषय मे कहा गया है कि प्रायः उत्तम प्रकृति के प्रेमी जन हुआ करते है। हम जैनमेघदूतम् मे भी आचार्य मेरूतुङ्ग ने आलम्बन के रूप मे नायक श्री नेमि एवं नायिका राजीमती का वर्णन किया है जो उत्तम प्रकृति के हैं। शृङ्गार रस ३ के विभाव के विषय में कहा गया है कि इसके अन्तर्गत चन्द्र - चन्द्रिका, चन्दानुलेपन भ्रमर झंकार आदि होते हैं, आचार्य मेरूतुङ्ग जी ने भी उद्दीपन विभाव के रूप में चन्द्रमा, चन्दनानुलेपन, प्राकृतिक वातावरण इत्यादि का प्रयोग जैनमेघदूतम् में किया है। प्राकृतिक वातावरण से तो सम्पूर्ण काव्य ही भरा हुआ है जो कि राजीमती के हृदय में स्थित रति भाव को और भी उद्दीप्त करता है। उदाहरणार्थ -
“सध्रीचीभिः स्खलितक्वचनन्यासमाशूपनीतैः
स्फीतैस्तैस्तै मलयजजलार्द्रादि शीतोपचारैः ।
प्रत्यावृत्ते कथमपि ततश्चेतने दत्तकान्ता
कुष्ठोत्कष्ठं नवजलमुचं सानिदध्यौ च दध्यौ । । ""
जैनमेघदूतम् १/३
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