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उपर्युक्त अनुभाव के प्रसंग में सात्त्विक भाव का प्रसङ्ग आया है, अतः संक्षेप मे सात्त्विक भाव क्या और कौन है? इसका निर्देश प्रस्तुत है -
आचार्य धनञ्जय ने आठ सात्त्विक भावों का उल्लेख किया है - स्तम्भप्रलयरोमाञ्चा: स्वेदो वैवर्ण्यवेपथु।।५।। अश्रुवैस्वर्यमित्यष्टौ, स्तम्भोऽस्मिन्निष्क्रियाङ्गता। प्रलयो नष्टसंज्ञत्वम्, शेषाः सुव्यक्तलक्षणाः।।' साहित्यदर्पणकार ने भी सात्त्विकभावों का उल्लेख किया है -
(१) स्तम्भ (२) स्वेद (३) रोमाञ्च (४) स्वरभङ्ग (५) वेपथु (६) वैवर्ण्य (७) प्रलय।
इन आठों सात्त्विक भावों का स्वरूप निम्नलिखित है - (१) स्तम्भ - भय, हर्ष, रोग आदि के कारण मन किं वा शरीर के
व्यापारों का रुक जाना स्तम्भ है। (२) स्वेद • रति प्रसङ्ग, आतप (धूप), परिश्रम आदि के कारण
शरीर से निकल पड़ने वाले जल को (पसीना) 'स्वेद' कहते है (३) रोमाञ्च - हर्ष, विस्मय, भय आदि के कारण रोंगटे के खड़े
होने को रोमाञ्च कहा जाता है। (४) स्वरभङ्ग . मद्यपान, हर्ष, पीड़ा आदि के कारण गले के रूंध
जाने विकृत हो जाने का नाम स्वरभङ्ग है। (५) वेपथु - अनुराग, द्वेष, परिश्रम आदि के कारण व शरीर की
कंपकंपी को वेपथु कहा जाता है।
दशरूपकम् ४,५,६