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अर्थात् जिसका निवेद स्थायीभाव है वह शान्त रस भी नवम रस है।
आचार्य विश्वनाथ ने शान्तरस का स्वरूप निम्नलिखित प्रकार से वर्णित किया है -
शान्तः शमस्थायिभाव . . . . निर्वेदहर्षस्मरणमतिभूतदयादयः।
अर्थात् शान्त वह रस है जो कि ‘शम' रूप स्थायी भाव का आस्वाद हुआ करता हैं। इसके आश्रय उत्तम प्रकृति के व्यक्ति है। इसका वर्ण कुन्द श्वेत अथवा चन्द्रश्वेत है। इसके देवता श्री भगवान् नारायण हैं। अनित्यता किं वा दुःखमयता आदि के कारण समस्त सांसारिक विषयो की निःसारता का ज्ञान अथवा साक्षात् परमात्मस्वरूप का ज्ञान ही इसका आलम्बन विभाव है। इसके उद्दीपन हैं पवित्र आश्रम, भगवान की लीला भूमियाँ तीर्थ स्थान, रम्य कानन, साधु संतों के संग आदि। रोमाञ्च आदि इसके अनुभाव हैं और इसके व्यभिचारी भाव है निर्वेद, हर्ष, स्मृति, मति, जीवदया आदि।'
काव्यानुशासनकार ने 'शम' को शान्त का स्थायीभाव मानते हैं -
'वैराग्यादिविभावो यमाद्यनुभावो धृत्यादिव्यभिचारी शमः शान्तः' वैराग्यसंसारभीरुतातत्त्वज्ञानवीतराग- परिशीलनपरमेश्वरानुग्रहादिविभावो यमनियमाध्यात्मशास्त्रचिन्तनाद्यनुभावो धृतिस्मृतिनिर्वेदमत्यादिव्यभिचारी तृष्णाक्षयरूपः शमः स्थायिभावश्चर्वणां प्राप्तः शान्तो रसः।'
नाट्यदर्पणकार के भी अनुसार शम ही शान्त का स्थायी भाव है -
काव्यप्रकाशः ४/४७ पृ. सं. १५७ साहित्यदर्पण ३/२४५-२४८ काव्यानुशासन २/१७