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रस विषयक दृष्टियों पर विचार करते हुए शारदातनय ने आरोचक, अनुत्सेक एवं अविद्ध तथा विद्ध आदि बीभत्स की दृष्टियो की भयानक की दृष्टियो के साथ एक रूपता बताते हुए उपस्थित किया है।
भयानक रस का विभाव विकृत नामक विभाव को माना गया है। भयानक के आलम्बन विभाव की चर्चा के प्रसंग में भयंकर अरण्य के प्रविष्ट तथा महासंग्राम में विचरण करने वाले एवं गुरुजनो के प्रति अपराध करने वाले को आलम्बन विभाव रूप में यह स्वीकार किया गया है। भयानक-रस विषयक अनुभावों तथा सात्त्विकभावो की स्थिति अन्य रसों की स्थितियों से पूर्णतः साम्य भाव से उपस्थित की गई है। भय को भयानक का स्थायी भाव माना जाता है भयानक रस का संचारीभाव शंका, निर्वेद चिन्ता, जड़ता, ग्लानि, दीनता, आवेग, मद, उन्माद, विषाद, व्याधि, मोह, अपस्मृति, त्रास आलस्य बीच-बीच में स्तम्भ, कम्प, रोमाञ्च, स्वेद आदि का होना तथा विवर्णता मृत्यु भय, गद्गद आदि स्थितियों का उल्लेख किया है।
आचार्य विश्वनाथ के अनुसार ' भयानक' वह रस है जिसे भयरूप स्थायी भाव का आस्वाद कहा जाता हैं। इसका वर्ण कृष्ण है और इसके देवता काल है। काव्य कोविदों ने स्त्री किं वा नीच प्रकृति के लोगों को इसका आश्रय माना है इसका आलम्बन भयोत्पादक पदार्थ है और ऐसे भयोत्पादक पदार्थो की भीषण चेष्टायें इसके उद्दीपन विभाव का काम करती हैं। विवर्णता, गद्गदभाषण, प्रलय, स्वेद, रोमाञ्च, कम्प, इतस्ततः अवलोकन आदि-आदि इसके अनुभावहै। इसके व्यभिचारीभावों में जुगुप्सा, आवेग, संमोह, संजाह ग्लानि, दीनता, शङ्का, अपस्मार, संभ्रम, मरण आदि आते हैं।'
आचार्य धनञ्जयानुसार भयानक रस की परिभाषा निम्नलिखित है
साहित्यदर्पण ३/२३५-२३८