________________
किसी प्रतिकूल भाव को दबा करता है । वह अन्त तक एक रस बना रहता है और उसमे रस के अनुकरण की मूल शक्ति निहित होती है ।
"अविरुद्धा विरूद्धा वा यं तिरोधातुमक्षमाः ।
11
अस्वादाङ्कुरकन्दोऽसौ भावस्थायीति सम्मतः ।।'
साहित्यदर्पण में नवो रसों के आधार पर स्थायी भावों के ९ भेद निरूपित किये गये हैं -
रतिर्हासश्च शोकश्च क्रोधोत्साहौ भयं तथा ।
जुगुप्सा विस्मयश्चेत्थमष्टौ प्रोक्ताः शमोऽपि च।। '
अर्थात् शृङ्गार रस का स्थायी भाव रति, हास्य रस का हास, करुण रस का शोक, रौद्र रस का क्रोध, वीर रस का उत्साह, भयानक रस का स्थायी भाव भय, तथा बीभत्स का जुगुप्सा, अद्भुत रस का स्थायीभाव विस्मय तथा शान्त रस का स्थायी भाव शम होता है ।
नवो रसों का संक्षिप्त परिचय
118
१
-
"
शृङ्गार रस शृङ्गार रस का स्वरूप 'शृङ्गार' शब्द की व्युत्पत्ति ('शृङ्गं नृच्छति' इति शृङ्गारः ) से ही स्पष्ट हो जाता हैं। शृङ्ग का अभिप्राय है (कामुकयुगल के उत्पीडक) कामाविर्भाव का और शृङ्गार का अभिप्राय है उसका जो इस प्रकार कामोद्भेद से संभूत हो। इस रस के आलम्बन प्रायः उत्तम प्रकृति के ही प्रेमीजन हुआ करते हैं। इसके उद्दीपन विभाव चन्द्र- चन्द्रिका, चन्दनानुलेपन, भ्रमर झंकार आदि । इसके अनुभाव प्रेम को भृकुटि भाव होते हैं। रति इसका स्थायी भाव है। इसका वर्णश्याम है और अभिमानी देव विष्णुभगवान हैं। शृङ्गार रस दो प्रकार का होता है -
साहित्यदर्पण ३/१७५