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'शृङ्गार- हास्य- करुण- रौद्र- वीर-भयानकाः ।
वीभत्साद्भुत शान्ताश्च, रसाः सदिभर्नव स्मृताः । । ""
आचार्य विश्वनाथ के अनुसार रस की संख्या
'शृङ्गारहास्यकरुणरौद्रवीरभयानकाः
वीभत्सोऽद्भुत इत्यष्टौ रसाः शान्तस्तथा मतः ।।'
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आचार्य मम्मट के अनुसार -
शृङ्गारहास्यकरुणरौद्रवीरभयानकाः । '
वीभत्साद्भुतसंज्ञौ चेत्यष्टौ नाट्ये रसाः स्मृताः । ।
अर्थात् शृङ्गार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स और अद्भुत नामक ( ये आठ) रस नाट्य में कहे गये हैं। आचार्य मम्मट ने शान्त रस को 'शान्तोऽपि नवमो रसः स्मृतः यहाँ नाट्य श्रव्य दोनों में शान्त रस की सत्ता स्वीकार की है।
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इस प्रकार हमें ज्ञात होता है कि नाट्य काव्य में आठ ही रस होते हैं किन्तु श्रव्य के पाठ्य काव्यों में शान्त नामक नवम रस भी होता है।
इस तरह आठ ही रस है। इन आठों का स्रोत उद्गम स्थल शान्त है।
१ नाट्यदर्पण ( रामचन्द्र गुणचन्द्र ) ३ / १६५
सा.द. ३/१८२ पृ. २३०
का. प्र० ४ / २९
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" शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघम् ' भगवान परमशिव शान्त हैं शाश्वत हैं नित्य हैं प्रमा के बाहर है, अनघ निष्कलंक । " शान्ताकारं भुजगशयनम् इत्यादि सभी जगहों मे प्रभु परमात्मा को ही शान्त रस शब्द से कहा है और उसी को