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राजीमती की सखियाँ धैर्यशाली तथा बुद्धिमती भी है। श्री नेमिद्वारा पाणि ग्रहण अस्वीकार कर देने पर राजीमती मूर्च्छित हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में उसकी सखियाँ उसे धैर्य धारण करने को कहती हैं और उसे समझाती है कि यदि श्री नेमि विवाह करने के उपरान्त तुमसे विमुख हो जाते तो तुम्हारी स्थिति समुद्र में छोड़ी हुई नौका सदृश होती। परन्तु अभी कुछ नहीं बिगड़ा है अन्य किसी गुण सम्पन्न राजकुमार के साथ तुम्हारी शादी जो जायेगी। चिन्ता मत करो -
अग्रे धूमध्वज गुरुजनं चेदुदुह्य व्यमोक्ष्यत् तत पाथोधौ प्रवहणमुपक्षिप्य सोऽमज्जयिष्यत् । राजान्यानामधिगुणतरोऽन्योऽथ भावी विवोढेव्यालीनां गीरजनि च तदा मे क्षतक्षारतुल्यः।'
राजीमती की सखियों को अध्यात्मिक ज्ञान भी है। विरह से व्यथित राजीमती के तीक्ष्ण शब्दों को सुनकर उसे बहुविध समझाते हुए सारे दोष का कारण मोह ही है ऐसा बताती हैं।
तत्पश्चात् राजीमती की सखियाँ उसे अनायास उत्पन्न होने वाले महामोह को बोधरूपी शस्त्र से नष्ट कर डालने का परामर्श देती हैं।
किं त्वेवं ते यदुकुलमणेर्वीरपल्या विसोढुं नैतन्न्याय्यं तदिममधुना बोधशस्त्रेण छिन्द्धि।'
जैनमेघदतम् ३/५६ किं वा कस्याग्रे कथयसि सखि प्राज्ञचूडामणे नो दोषस्ते प्रकृतिविकृतमोह एवात्र मूलम् । जैनमूघदतम् ४/३८ जैनमेघदूतम् ४/३९