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शब्दों में विकसित किया है। यहाँ तक कि कवि ने उनके नामों का भी उल्लेख नहीं किया है।
अन्य काव्यों ( नेमिनाथ महाकाव्य एवं नेमिदूतम् ) से यह ज्ञात होताहै कि राजीमती के पिता का नाम उग्रसेन था। ये वात्सल्य प्रिय हैं। सन्तति सुख मे ही इनका सुख हैं। वे अपनी पुत्री राजीमती से इतना स्नेह करते है कि उसके विवाह मण्डप को सजाने के लिए श्रेष्ठ सज्जाकारों को बुलाते हैं। उपर्युक्त प्रसंग से ये पता चलता है कि कला प्रेमी भी हैं।
___ सखियाँ - काव्य में राजीमती की सखियों के चरित्र को भी अनदेखा नही किया जा सकता है। इनका चरित्र बहुत महत्त्वपूर्ण है। राजीमती की सखियाँ राजीमती को दुःखित देखकर स्वयं भी दुःखित हो जाती हैं और उसके दुःख को पूर्णतः दूर करने का प्रयास करती हैं। इसप्रकार वे सच्ची मित्र हैं। इनका स्वभाव भी अतिनिश्छल है।
राजीमती की सखियाँ प्रत्येक स्थिति से समझौता करना जानती है। वे राजीमती की प्रत्येक स्थिति में साथ देती है। विवाह हेतु जब श्री नेमि राजीमती के द्वारपर आते हैं तो उस समय राजीमती के दक्षिण नेत्र फडकने लगते है और इस पर राजीमती को आशंका होती है कि मेरा विवाह श्री नेमि के साथ होगा या नहीं। राजीमती की आशङ्का को जानकर उसकी सखियाँ अत्यधिक उद्वेग के कारण घबराजाती है। परन्तु उसे चुप रहने को कहती है और उसे अमाङ्गलिक बातों को मन से निकाल देने को कहती है
शान्तं पापं क्षिपसि ससिते क्षीरपूरेऽक्षखण्डान् । मङ्गल्यानामवसर इहामङ्गलं ते खलूक्त्वा।।'
नेमिदूतम् १/१ जैनमेघदूतम् ३/४