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अतिप्रकृष्ट बुद्धि वाले है। ये सदैव धर्म के मार्ग पर चलते हैं। अपनी प्रजा का पालन-पोषण भी बहुत ईमानदारी से करते हैं। इन्हीं सब पुण्यों के कारण युद्ध में ये सर्वथा विजय प्राप्त करते है।
समुद्रविजय पुत्र-वत्सल पिता है। अपने पुत्र के जन्म को सुनकर अत्यधिक प्रसन्न होते है और उनका सूतिका कर्म दिक् कन्याओ द्वारा सम्पन्न कराते है। श्री नेमि की युवावस्था को देखकर भाव विह्वल हो जाते है तथा उन्हें पाणिग्रहण करने को कहते हैं।
इसप्रकार समुद्रगुप्त में सम्पूर्ण राजोचित गुण विद्यमान है। वे रूपवान्, शक्तिशाली ऐश्वर्य सम्पन्न तथा प्रखर मेधावी वात्सल्य प्रेमी हैं।
शिवा - शिवा देवी श्री नेमि की माता है। एक स्थल पर शिवा को समुद्रविजय की प्रेयसी भी कहा गया है-'
तेषामाद्यः क्षितिपतिगुरुः श्रीशिवाप्रेयसी च प्राज्ञों द्वैधं सुकृतविजयी सुप्रजाः श्रीसमुद्रः।।'
शिवा में नारी सुलभ सभी गुण विद्यमान है। वे अत्यधिक सरल स्वभाव की हैं। उनके हृदय में वात्सल्य प्रेम कूट-कूट कर भरा हुआ हैं। अपने पुत्र के रूप-सौन्दर्य आदि गुणों को देखकर अपार प्रसन्नता की अनुभूति करती है। इससे अधिक कवि ने काव्य में शिवा के चरित्र का विकास नहीं किया है। अतः इनके चरित्र को अति संक्षिप्त में वर्णन किया गया है।
अन्यपात्र- जैनदूतकाव्य की नायिका राजीमती के माता-पिता के विषय मे विस्तृत वर्णन नहीं मिलता है। कवि ने इनके चरित्र को अत्यन्त अल्प
जैनमेघदूतम् १/१४ जैनमेघदूतम् १/१४