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इस प्रकार स्पष्ट है कि राजीमती की सखियो मे एक सच्चे मित्र क प्रत्येक गुण विद्यमान है और काव्य मे उन्होने अपने कर्त्तव्य का निर्वाह में कोई भुरि नही की है।
निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि आचार्य मेरूतुङ्ग ने काव्य मे जिनपात्रो का प्रत्यक्ष या अपरोक्ष चित्रण किया गया है वे वस्तुतः चारित्रिक विविधताओ से युक्त है।