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यदुवंश मे हुआ था। श्रीकृष्ण के समय को महाभारत काल के अन्तर्गत रख सकते हैं। श्रीनेमि इनके चचेरे भ्राता थो। इन्होने राजनीति की शिक्षा दी थी।
श्रीकृष्ण नीलकान्ति से युक्त थे और उनकी लम्बाई दस धनुष के बराबर थी।
श्रीकृष्ण कुशल योद्धा भी थे। इसलिए उन्होने एक शस्त्रागार भी बनवा रखा था जिसमें सरल आयुधों तथा तीक्ष्ण धार वाले बाणों से युक्त उत्कृष्ट शोभा वाली शस्त्र श्रेणी थी। उस शस्त्रागार में पाञ्चजन्य शंख रखा हुआ था जिसे श्री कृष्ण बजा सकते थे। इसे बजाने पर प्रलयकारी स्थिति आ जाती थी। एक बार श्री नेमि ने इस शंख को बजा कर प्रलयकारी स्थिति ला दी
श्रीकृष्ण बहुत बीर थे। उनकी भुजा मे लाखो हाथियों के समान बल था। श्रीकृष्ण में ईर्ष्या भाव नही था वे पूरे आत्म विश्वास के साथ श्री नेमि से लडते है। वे हार जाते है फिर भी निराश नही होते हैं।
श्रीकृष्ण विनोदी स्वभाव के थे। वे अपने परिजनों एवं श्री नेमि के साथ उद्यान में क्रीडा खेलते है। श्रीकृष्ण विद्वान भी थे। तभी तो वे पके हुए रसीले बड़े बड़े फलों को उसी प्रकार तोड़ लेते हैं जिस प्रकार विद्वान कवि सार ग्रन्थो के निर्दोष अर्थ वाले सूक्ति समूह को ग्रहण कर लेता है
दर्श दर्श फलितफलदानपाकिमं पीतलत्वं विभ्रद्वभुः सरसमकृशं वानशालाटवान्यत् । गर्जद्गर्जः फलमथ ललौ लीलयाऽनाश्रवार्थ सारग्रन्थान् कविरिव सुधीः सद्गुणं सूक्तजातम् ।।'
जैनमेघदूतम् २/३८