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Kasaya Pahuda Khutta
[7 Upayoga Arthadhikara]
245. In the present time, those who are under the influence of anger (krodha), for them there is no mana-kala (time of pride), but only no-mana-kala (time of no-pride) and missa-kala (mixed time).
246. The remaining nine types of time (kala) are also there.
247. Thus, the time (kala) associated with the mode of anger (krodha-upayoga) is known.
248. Those who are under the influence of delusion (moha) in the present time, for them the mana-kala is of two types, the krodha-kala is of two types, the moha-kala is of three types, and the lobha-kala is of three types.
Thus, the time (kala) associated with the four kasayas (passions) for the relevant living beings totals to twelve types.
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कसाय पाहुड खुत्त
[ ७ उपयोग अर्थाधिकार
२४५. असि समए कोहोबजुत्ता तेसिं तीदे काले माणकालो णत्थि, गोमाणकालो मिस्सकालो य । २४६. अवसे साणं णवविहो कालो । २४७. एवं कोहोवजुत्ताकारसविहो कालो विदितो । २४८. जे अस्सि समए मायोवजुत्ता तेसिं तीदे काले माणकालो दुविहो, कोहकालो दुविहो, मायाकालो तिविहो, लोभकालो तिविहो ।
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है । उसी मानकपायसे उपयुक्त जीवराशिका अतीतकाल में मायाकपाय- सम्बन्धी मायाकाल, नोमायाकाल और मिश्रकाल, तथा लोभकपाय -सम्बन्धी लोभकाल, नोलोभकाल और मिश्रकाल, इस प्रकार से तीन तीन प्रकारका और भी काल व्यतीत हुआ है । इस प्रकार से उपयुक्त चारो कषाय-सम्बन्धी तीनो कालोके भेद मिलाकर मानकपायसे उपयुक्त जीवोका यह काल बारह प्रकारका हो जाता है ।
चूर्णिम् ० - जो जीव इस वर्तमान समय में क्रोधकपायसे उपयुक्त हैं, उनका अतीत कालमें मानकाल नहीं है, किन्तु नोमानकाल और मिश्रकाल, ये दो ही प्रकार के काल होते हैं ।।२४५-२४६।।
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विशेषार्थ - वर्तमान समय मे क्रोधकपायसे उपयुक्त जीवोके अतीतकालमें मानकाल न होने का कारण यह है कि कोवकपायका काल अधिक होनेसे क्रोधकपायसे उपयुक्त जीवरागि बहुत है, किन्तु मानकायका काल अल्प होनेसे मानकवायसे उपयुक्त जीवराशि कम है । इसलिए वर्तमान समय में क्रोधरूपायसे उपयुक्त होकर यदि कोई विवक्षित जीवराशि अवस्थित है, तो अतीतकालमे एक ही समय मे वही सबकी सब जीवराशि मानकपायसे उपयुक्त होकर नहीं रह सकती है । इसलिए यहॉपर 'मानकाल नहीं है' ऐसा कहा है । नोमानकाल और मिश्रकाल होते हैं । इसका कारण यह है कि विवक्षित जीवराशिका मानव्यतिरिक्त शेष कपायोंमें अवस्थान पाये जानेसे नोमानकाल वन जाता है, तथा मान तथा मानसे भिन्न माया और लोभादि कषायोमे यथासंभव अवस्थान पाये जाने से मिश्रकाल बन जाता है ।
चूर्णिसू० - उन्हीं वर्तमान समयमे क्रोधकषायसे उपयुक्त जीवोके अतीत कालमै मानकपायके अतिरिक्त अवशेप कषायोका नौ प्रकारका काल होता है । इस प्रकार क्रोधकपायसे उपयुक्त जीवो के अतीतकालसे ग्यारह प्रकारका काल व्यतीत हुआ है ॥२४६-२४७॥
विशेषार्थ - क्रोधकाल, नोक्रोधकाल, मिश्रकाल, इस प्रकारसे प्रत्येक कषायके तीनतीन प्रकारके काल होते हैं । अतएव चारो कषायो के कालसम्बन्धी वारह भेद होते हैं । इनमें से वर्तमान समयमें क्रोधकषायसे उपयुक्त जीवोके अतीतकाल में 'मानकाल' नही होता है, इसका कारण ऊपर वतला आये है । अतः उस एक भेदको छोड़कर शेष ग्यारह भेदरूप काल क्रोधकषायसे वर्तमान समयमे उपयुक्त जीवो के अतीतकालमें व्यतीत हुआ है, ऐसा कहा है । चूर्णिसू० - जो जीव वर्तमान समयमे मायाकपाय के उपयोग से उपयुक्त है, उनके अतीतकाल में दो प्रकारका मानकाल, दो प्रकारका क्रोधकाल, तीन प्रकारका माया और तीन प्रकारका लोभकाल व्यतीत हुआ है || २४८ ॥