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Ga. 69)
Explanation of the use of passions in relation to the state of existence 193. In the state of hell, there is only one passion, which is anger by rule. 194. If there are two passions, then there is a combination of anger with one other passion from the remaining passions. 195. If there are three passions, then there is a combination of anger with two other passions from the remaining passions. 196. If there are four passions, then all the passions are present, namely anger, pride, deceit, and greed. 197. Just as in the state of hell, anger is present with other passions, similarly in the state of heaven, greed is present with other passions. 198. With this single explanation, the meaning of the fourth stanza is complete.
199. The meaning of the fourth stanza is explained according to the flowing explanation. 200. "In one part", what is the part that is the place of the arising of passions? 201. "At one time", it is said that it is the place of the use of passions. 202. This is the explanation. 203. Then the question arises. 204. Which state of existence is there in one place of the arising of passions or in one place of the use of passions?
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गा०६९)
गत्यपेक्षया कषायोपयोग-निरूपण १९३. णिरयगईए जइ एक्को कसायो, णियमा कोहो । १९४. जदि दुकसायो, कोहेण सह अण्णदरो दुसंजोगो । १९५. जदि तिकसायो, कोहेण सह अण्णदरो तिसंजोगो । १९६. जदि चउकसायो सव्वे चेव कसाया । १९७. जहा णिरयगदीए कोहेण, तहा देवगदीए लोभेण कायव्वा । १९८. एक्केण उवएसेण चउत्थीए गाहाए विहासा समत्ता भवदि।
१९९. पवाइजतेण उवएसेण चउत्थीए गाहाए विहासा । २००. 'एक्कम्मि दु अणुभागे' त्ति, जं कसाय-उदयट्ठाणं सो अणुभागो णाय ? २०१. 'एगकालेणेत्ति' कसायोवजोगट्टाणेत्ति भणिदं होदि । २०२. एसा सण्णा । २०३. तदो पुच्छा। २०४. का च गदी एक्कम्हि कसाय-उदयट्ठाणे एक्कम्हि वा कसायुवजोगहाणे भवे ? तथा उस एक कषायके साथ यथासम्भव मान, माया आदि कषायोक पाये जानेसे दो, तीन
और चारों कषायोंसे उपयुक्त जीव पाये जाते है । किन्तु शेष तिर्यंच और मनुष्यगतिमे चारो कपायोसे उपयुक्त ही जीवराशि ध्रुवरूपसे पाई जाती है, इसलिये उनमें शेष विकल्प सम्भव नहीं हैं।
चूर्णिसू०-नरकगतिमे यदि एक कषाय हो, तो वह नियमसे क्रोधकपाय होती है। यदि दो कषाय हों, तो क्रोधके साथ शेष कपायोमेसे कोई एक कपाय संयुक्तरूपसे रहती है। जैसे-क्रोध और मान, क्रोध और माया, अथवा क्रोध और लोभ । यदि तीन कपाय हो, तो क्रोधके साथ शेप कषायोमेंसे कोई दो कपाय रहेगी । जैसे क्रोध-सान, माया, अथवा क्रोध, मान, लोभ, अथवा क्रोध माया और लोभ । यदि चारो कपाय हो, तो क्रोध, मान, माया और लोभ ये सभी कपाय रहेगी ॥१९४-१६४॥
चूर्णिसू०-जिस प्रकार नरकगतिमे क्रोधके साथ शेष विकल्पोका निर्णय किया है, उसी प्रकार देवगतिमें लोभकपायके साथ शेष विकल्पोका निर्णय करना चाहिए। इसप्रकार एक अर्थात् अप्रवाह्यमान उपदेशसे चौथी गाथाकी अर्थविभाषा समाप्त होती है ॥१९७-१९८॥
__चूर्णिसू०-अव प्रवाह्यमान उपदेशके अनुसार चौथी गाथाकी अर्थविभापा की जाती है 'एक अनुभागमें' ऐसा कहनेपर जो कपाय-उदयस्थान है, उसीका नाम अनुभाग है ॥२०॥
विशेषार्थ-अप्रवाह्यमान उपदेशके अनुसार 'जो कषाय है, वही अनुभाग है' इस प्रकार व्याख्यान किया था। किन्तु प्रवाह्यमान उपदेशानुसार 'जो कपायोके उदयस्थान हैं, वह अनुभाग है, ऐसा अर्थ समझना चाहिए ।
। चूर्णिसू०-'एक कालसे' इस पदका अर्थ कपायोपयोग कालस्थान इतना लेना चाहिए। यह संज्ञा है। अर्थात् अनुभाग यह संज्ञा कषायोपयोगकालस्थानकी जानना चाहिए । इसलिए इस संज्ञा-विशेपका आलम्बन लेकर गाथासूत्रानुसार पृच्छा करना चाहिए ॥२०१-२०३॥
चूर्णिसू०-एक कषाय-उदयस्थानमे अथवा एक कषाययोगकालस्थानमे कौन गति