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Gāthā 62] Determination of the Minimum and Maximum of the Five Aspects of Bondage from the Viewpoint of Subsistence
568. The arising of the subsistence (sthiti) of the Jīva is threefold.
569. The emanation of the subsistence is infinitely more than the number of moments.
570. The minimum subsistence-bondage, subsistence-transition, and subsistence-karma are all countably infinite.
571. The specific subsistence-transition is more.
572. The specific subsistence-karma is more.
573. The minimum subsistence-transition and subsistence-karma of the six kasāyas (passions) is small.
574. The minimum subsistence-bondage of the six kasāyas is infinitely more.
575. The minimum subsistence-emanation of the six kasāyas is countably infinite.
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गा० ६२] स्थित्यपेक्षया-वन्धादि-पंचपद-अल्पबहुत्व-निरूपण ५४३ जढिदि-उदयो तत्तियो चेव । ५६८. जडिदि-उदीरणा समयाहियावलिया सा असंखेज्जगुणा । ५६९. जहण्णगो हिदिबंधो द्विदिसंकमो हिदिसंतकम्मं च ताणि संखेज्जगुणाणि' । ५७०. जहिदिसंकमो विसेसाहियो । ५७१. जहिदिसंतकम्मं विसेसाहियं । ५७२. जद्विदिबंधो विसेसाहिओं।
५७३. छण्णोकसायाणं जहण्णगो डिदिसंकमो संतकम्मं च थोवं । ५७४. जहण्णगो द्विदिबंधो असंखेजगुणो । ५७५.जहणिया द्विदि-उदीरणा संखेज्जगुणा*। अर्थात् एक स्थितिप्रमाण है । पुरुषवेदफी यस्थितिक-उदीरणा एक समय अधिक आवलीप्रमाण है । वह पुरुषवेदके यस्थितिक-उदयसे असंख्यातगुणी है । पुरुषवेदकी यत्स्थितिक-उदीरणासे उसीका जघन्य स्थितिबन्ध, जघन्य स्थितिसंक्रम और जघन्य स्थितिसत्कर्म ये सब संख्यातगुणित हैं । ( क्योकि, यहॉपर अबाधाकालसे रहित आठ वर्षप्रमाण पुरुषवेदके चरम स्थितिवन्धको ग्रहण किया गया है । ) पुरुषवेदके जघन्य स्थितिसंक्रमसे उसीका यत्स्थितिकसंक्रम विशेष अधिक है। (क्योकि, यहॉपर एक समय-हीन दो आवलीकालसे कम पुरुषवेदका जघन्य आबाधाकाल भी सम्मिलित हो जाता है।) पुरुपवेदके यत्स्थितिक-संक्रमसे उसीका यत्स्थितिकसत्कर्म (एक स्थितिसे) विशेष अधिक है। पुरुषवेदके यत्स्थितिक-सत्कर्मसे उसीका यत्स्थितिकबन्ध विशेष अधिक है ( यह विशेष दो समयसे कम दो आवलीप्रमाण अधिक जानना चाहिए । ) ॥५६६-५७२।।
चूर्णिस० हास्यादि छह कषायोका जघन्य स्थितिसंक्रम और जघन्य स्थितिसत्कर्म वक्ष्यमाण सर्व पदोकी अपेक्षा सबसे कम है । हास्यादिषट्कके जघन्य स्थितिसंक्रमसे उन्हींका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणित है। ( क्योकि, उसका प्रमाण पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन दो वटे सात (3) सागरोपम है ।) हास्यादिषट्कके जघन्य स्थितिबन्धसे उन्हीकी जघन्य स्थिति-उदीरणा संख्यातगुणी है । ( क्योकि, उसका प्रमाण पल्योपमके असंख्यातवें
१ कुदो, पुरिसवेदचरिमठिदिबधस्स अट्ठवस्सपमाणस्स आबाहाए विणा गहणादो । जयध० २ कुदो; समयूण दो-आवलियाहि परिहीणजहण्णाबाहाए एत्थ पवेसदसणादो । जयध० ३ केत्तियमेत्तो विसेसो १ एगठिदिमेत्तो । जयध० ४ केत्तियमेत्तो विसेसो ? दुसमयूण-दो-आवलियमेत्तो । जयध० ५ कुदो खवगस्स चरिमछिदिखडयविसये पडिल्द्धजहण्णभावत्तादो | जयध०
६ किं कारण; एइ दियजहण्णठिदिबधस्स पलिदोवमासखेजभागपरिहीणसागरोवम-वे-सत्तभागपमाणस्स गहणादो । जयध०
७ किं कारण, पलिदोवमासखेजभागपरिहीणसागरोवमचदुसत्तभागमेत्तजण्णछिदिसतकम्मविसयत्तेण छिदिउदीरणाए जहण्णसामित्तपवुत्तिदसणादो । जयध०
9 ताम्रपत्रवाली प्रतिमे 'असंखेजगुणा' पाठ मुद्रित है (देखो पृ० १५९६ ) । पर टीकाके अनुसार 'संखेजगुणा' पाठ होना चाहिए।