Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
Gāthā 62] Determination of the Relative Paucity and Abundance of the Five Stages (of Bondage) from the Viewpoint of Sthiti (Subsistence).
524. The Satkarmasthi (Subsistence of Meritorious Karmas) of the Second Degree is somewhat more (abundant).
525. The Second Degree of the Nine Nokaṣāyas (Quasi-Passions) is the least (abundant).
526. The Udīraṇā (Manifestation) and Saṃkramaṇā (Transference) of the Nine Nokaṣāyas are manifold (more abundant).
527. The Udīraṇā and Saṃkramaṇā of the Nine Nokaṣāyas are somewhat more (abundant) than their Udaya (Arising).
528. The Satkarmasthi (Subsistence of Meritorious Karmas) of the Nine Nokaṣāyas is somewhat more (abundant) than their Udaya (Arising).
Annarma
1. How much is the difference? It is up to the maximum. Why? Because the subsistence of wrong belief is only at the time of the arising of right belief of the second degree.
2. How much is the difference? It is up to the full avali (a unit of time). Why? Because it is only at the time of the arising of right belief that the maximum subsistence is attained.
3. Why? Because of the measure of the subsistence of the influx of karmas and the subsidence of karmas.
4. Why? Because the manifold (more abundant) of those undergoing Saṃkramaṇā (Transference) and Udīraṇā (Manifestation) is less than forty-four Sāgaropama Koṭākoṭī (an extremely large number) from all the subsistence of bondage, Saṃkramaṇā, and Udaya.
5. How much is the difference? It is of one subsistence.
6. How much is the difference? It is less than two avali. Why? Because there the entry of the Udayāvali (Subsistence of Arising) along with the Saṃkramaṇāvali (Subsistence of Transference) is found.
________________
गा० ६२ ] स्थित्यपेक्षया वन्धादि-पंचपद-अल्पबहुत्व-निरूपण हियाओ'। ५२४. संतकम्मद्विदीओ विसेसाहियाओ । ५२५. णवणोकसायाणं जाओ द्विदीओ वझंति ताओ थोवाओ। ५२६. उदीरिज्जति संकामिज्जति य संखेज्जगुणाओ । ५२७. उदिण्णाओ विसेसाहियाओ । ५२८. संतकम्महिदीओ विसेसाहियाओ ।
चूर्णिसू०-सम्यग्मिथ्यात्वकी संक्रमणको प्राप्त होनेवाली स्थितियोसे उसीकी सत्कर्मस्थितियाँ कुछ विशेष अधिक है ॥५२४॥
विशेषार्थ-यह विशेष अधिकता सम्पूर्ण आवलीमात्र जानना चाहिए ।
चूर्णिस०-नव नोकषायोकी जो स्थितियाँ बन्धको प्राप्त होती है, वे सबसे कम हैं ॥५२५॥
विशेषार्थ-क्योकि, उनका प्रमाण आवाधाकालसे हीन अपना-अपना उत्कृष्ट स्थितिबन्ध है।
चूर्णिसू०- नव नोकपायोकी बंधनेवाली स्थितियोसे उनकी उदीरणा और संक्रमणको प्राप्त होनेवाली स्थितियाँ संख्यातगुणी है ॥५२६॥
विशेषार्थ-क्योकि, उनका प्रमाण बन्धावली, संक्रमणावली और उदयावलीसे हीन चालीस कोडाकोड़ी सागरोपम है।
चूर्णिसू०-नव नोकषायोकी उदीरणा और संक्रमणको प्राप्त होनेवाली स्थितियोंसे उन्हींकी उदयको प्राप्त होनेवाली स्थितियाँ कुछ विशेष अधिक हैं ॥५२७।।
विशेषार्थ- यहाँ अधिकताका प्रमाण एक स्थितिमात्र है।
चूर्णिस०-नव नोकषायोकी उदयको प्राप्त होनेवाली स्थितियोसे उन्हीकी सत्कर्मस्थितियाँ कुछ विशेष अधिक है ॥५२८।।
विशेषार्थ- यहाँ अधिकताका प्रमाण एक समय कम दो आवलीमात्र है, क्योकि यहाँ पर समयोन उदयावली के साथ संक्रमणावलीका भी अन्तर्भाव हो जाता है।
अब जघन्य स्थिति-सम्बन्धी अल्पबहुत्वको कहते हैं
Annarma
१ केत्तियमेत्तो विसेसो ? अतोमुत्तमेत्तो । कुदो, मिच्छत्तु कस्सट्ठिदि बधियूण सम्मत्त पडिवण्णविदियसमए चेव सम्मामिच्छत्तस्सुक्कस्सट्ठिदिसकमावलबणादो । जयध०
२ केत्तियमेत्तो विसेसो ? सपुण्णावलियमेत्तो। कुदो, सम्माइपिढमसमए चेव उकस्सविदिसंकमावलबणादो । जयध०
३ कुदो, आबाहूणसग-सगुकत्सठिदिवधपमाणत्तादो । जयध०
४ कुदो, सव्वासिं बधसकमणावलियाहिं उदयावलियाए च परिहीणचत्तालीससागरोवमकोडाकोडीमेत्तठ्दिीण सकामिजमाणोदीरिजमाणाणमुवलभादो । जयध०
५ केत्तियमेत्तो विसेसो ? एगठिदिमेत्तो । जयध०
-६ केत्तियमेत्तो विसेसो ? समयूण-दो-आवलियमेत्तो । किं कारण; समयू णुदयावलियाए सह संकमणावलियाए तत्थ पवेसुवलंभादो । जयध०
६८