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कसाय पाहुड सुन्त
[ ६ वेदक-अर्थाधिकार
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उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा । ३३७. सोगस्स उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा' । ३३८. भये उकस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा । ३३९. दुर्गुछाए उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा । ३४०. इत्थिवेदस्स उकस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणां । ३४१. पुरिसवेदस्स उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा । ४४२. रदीए उकस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणां । ३४३. हस्से उकस्साणुभागुदीरणा
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एक कपायकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणासे अनन्तगुणी हीन है । ( क्योंकि, कषायोके अनुभागसे नोकषायोके अनुभागका अनन्तगुणित हीन होना न्याय प्राप्त है । ) अरतिकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणासे अनन्तगुणी हीन है । ( क्योकि, अरति प्रकृतिकी अनुभाग- उदीरणा तो केवल अरतिभावको ही उत्पन्न करती है, किन्तु नपुंसकवेदकी अनुभाग- उदीरणा इष्टपाक-ईंटोके पंजाबा के समान निरन्तर प्रज्वलित परिणामोको उत्पन्न करती है, अतएव नपुंसकवेदसे अरतिकी अनुभाग- उदीरणाका अनन्तगुणित हीन होना उचित ही है ।) शोककी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणा अरतिकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणासे अनन्तगुणी हीन है । ( क्योकि अरतिपूर्वक ही शोक होता है । ) भयकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा शोककी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणासे अनन्तगुणी हीन है । ( क्योकि, शोकके उदयके समान भयका उदय बहुत काल तक दुःख उत्पादन करनेमें असमर्थ है । ) जुगुप्साकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणा भयकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणासे अनन्तगुणी हीन है । ( क्योंकि, भयके उदय के समान जुगुप्सा के उदयसे किसीका मरण नही देखा जाता है । ) स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणा जुगुप्साकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणासे अनन्तगुणी हीन है । ( क्योकि, जुगुप्साके उदयकी अपेक्षा स्त्रीवेद के उदय के प्रशस्तपना देखा जाता है । पुरुषवेदकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणा स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट अनुभाग - उदीरणासे अनन्तगुणी हीन है । ( क्योकि, कारीप (गोवर के कण्डा) की अमिसे पलाल (धान्यके वास) की अग्नि हीन दहन - शक्तिवाली होती है ।) रतिकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणा पुरुषवेदकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणासे अनन्तगुणी हीन होती है । ( क्योकि, पुरुपवेदके उदयके समान रतिकर्मके उदद्यमे सन्ताप उत्पन्न करनेकी शक्तिका अभाव है ।) हास्यकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणा रतिकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणासे अनन्तगुणी हीन है । ( क्योकि यह रतिपूर्वक होती है । ) सम्यग्मिथ्यात्वकी
१ कुदो; अरदिमेत्तकारणत्तादो । णवुंसयवेदाणुभागो पुण इट्ठवागग्गिसमाणो त्ति । जयध० २ कुदो; अरदिपुरगमत्तादो । जयध०
३ कुदो; सोगोदयस्सेव भयोदयत्स बहुकाल पडिवढदुक्खुप्पायणसत्तीए अभावादो | जयध०
४ कुदो; भयोदएव दुगुंछोदएण मरणानुवलभादो | जयध०
५. कुदो; पुब्विल्लं पेक्खिऊणेदस्स पसत्थभावोवलभादो । जयध०
६ कुदो; इत्यिवेदो कारिसग्गिमाणो । पुरिसवेदो पुण पलालग्गिसमाणो, तेणाणतगुणहीणो जादो | जयध०
७ कुदो; पुंवेदोदयस्येव रदिकम्मोदयस्य तंतापजणणसत्तीए अभावाटो । जयघ०