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## Verse 62]
**Description of the Nature of the Udirana-Bhang (Breaking of the Udirana)**
17. In these Udirana, what is the nature of the Bhang (breaking)? 18. The Bhang occurs when there is an entry of either the Krodha-Sanjwalana (anger-agitation), or the Mana-Sanjwalana (pride-agitation), or the Maya-Sanjwalana (delusion-agitation), or the Lobha-Sanjwalana (greed-agitation). 19. Thus, there are four Bhangs. 20. For those who have the entry of two Udiranas, there are twelve Bhangs.
**Explanation:**
The Udirana-Sthana (state of arousal) is a state of being where the soul is aroused by a particular Kshaya (passion). There are seven Udirana-Sthana, each corresponding to a different Kshaya. When a soul enters a particular Udirana-Sthana, it is said to have experienced a Bhang (breaking) of that Udirana.
The Bhang can occur in different ways, depending on the nature of the Kshaya that is causing the arousal. For example, if a soul is aroused by the Krodha-Sanjwalana (anger-agitation), it will experience a Bhang of the Krodha-Sanjwalana.
The number of Bhangs that can occur depends on the number of Udiranas that are being aroused. For example, if a soul is aroused by two Udiranas, it will experience twelve Bhangs.
**Specific Explanation:**
* **Verse 17:** This verse asks about the nature of the Bhang (breaking) that occurs in the Udirana-Sthana.
* **Verse 18-19:** This verse explains that the Bhang occurs when there is an entry of one of the four Sanjwalanas (agitations): Krodha (anger), Mana (pride), Maya (delusion), or Lobha (greed).
* **Verse 20:** This verse explains that there are twelve Bhangs for those who have the entry of two Udiranas. This is because there are four Sanjwalanas and three Vedas (types of knowledge), and each Sanjwalana can be aroused by each Veda.
**Churnisutra:**
* **Verse 17:** The Churnisutra (commentary) states that it is important to understand the nature of the Udirana-Sthana and the Bhang that occurs in them.
* **Verse 18-19:** The Churnisutra explains that the Bhang occurs when a soul enters a particular Udirana-Sthana.
* **Verse 20:** The Churnisutra explains that there are twelve Bhangs for those who have the entry of two Udiranas.
**Note:** The term "Udirana" is a Jain term that refers to a state of arousal or excitement. The term "Bhang" refers to a breaking or a change in state. The term "Sanjwalana" refers to an agitation or a passion. The term "Kshaya" refers to a passion or a negative emotion. The term "Veda" refers to a type of knowledge.
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गा० ६२]
प्रकृतिस्थान-उदीरणा-भंग-निरूपण १७. एदेसु हाणेसु पयडिणिद्देसो काययो भवदि । १०.एयपयडिं पवेसेदि सिया कोहसंजलणं वा, सिया माणसंजलणं वा, सिया मायासंजलणं, सिया लोभसंजलणं वा । १९. एवं चत्तारि भंगा । २०. दोण्हं पयडीणं पवेसगस्स वारस भंगा। उदीरणास्थान होता है । उक्त छह प्रकृतिरूप स्थानमे सम्यग्मिथ्यात्व या किसी एक अनन्तानुबन्धीकषायके प्रवेश करनेपर सात प्रकृतिरूप उदीरणास्थान हो जाता है। इसीमे सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुवन्धीकषाय इन दोनोके साथ मिथ्यात्वके और मिलानेपर आठ प्रकृतिरूप उदीरणास्थान होता है। सम्यक्त्वप्रकृति, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण, संज्वलनसम्बन्धी क्रोधादिचतुष्कमें से कोई एक त्रिक, कोई एक वेद, हास्यादि युगलद्वयमेंसे कोई एक युगल और भय और जुगुप्साकी उदीरणा करनेवालेके नौ प्रकृतिरूप उदीरणास्थान होता है। सम्यक्त्वप्रकृतिके स्थानपर मिथ्यात्वको लेकर तथा अनन्तानुबन्धी किसी एक कषायके और मिला देनेपर दश प्रकृतिरूप उदीरणास्थान होता है ।
चूर्णिसू०-इन उपर्युक्त उदीरणास्थान में प्रकृतियोका निर्देश करना चाहिए ॥१७॥
विशेषार्थ-किन-किन प्रकृतियोको लेकर कौन-सा स्थान उत्पन्न होता है, इस बातका निर्देश करना आवश्यक है, अन्यथा उदीरणास्थान-विषयक ठीक ज्ञान नहीं हो सकेगा । प्रकृतियोका निर्देश ऊपरके विशेषार्थमे किया जा चुका है।
चूर्णिसू०-एक प्रकृतिका प्रवेश करता है-कदाचित् क्रोध संज्वलनका, कदाचित् मानसंज्वलनका, कदाचित् मायासंज्वलनका और कदाचित् लोभसंज्वलन का। इस प्रकार चार भंग होते है ॥१८-१९॥
विशेषार्थ-जो जीव एक प्रकृतिरूप स्थानकी उदीरणा करते हैं, उनके चार विकल्प होते हैं। जो जीव संज्वलन क्रोधकषायके उदयके साथ श्रेणीपर चढ़ा है, वह वेदकी प्रथम स्थितिके आवलिमात्र अवशिष्ट रह जानेपर एक संज्वलनक्रोधकी ही उदीरणा करेगा। इसी प्रकार मान, माया और लोभकपायके उदयके साथ श्रेणीपर चढ़ा हुआ जीव उक्त समयपर एक मान, माया अथवा लोभकपायकी ही उदीरणा करेगा । इस प्रकार एक प्रकृतिरूप उदीरणास्थानके चार भंग हो जाते है ।
चूर्णिसू०-दो प्रकृतियोकी उदीरणा करनेवालेके वारह भंग होते है ॥२०॥
विशेषार्थ-तीनो वेदोके साथ चारो संज्वलनकपायोके अक्ष-परिवर्तनसे बारह भंग होते हैं । अर्थात् पुरुषवेदके साथ क्रमशः संज्वलन क्रोध, मान, माया अथवा लोभकी उदीरणा करनेपर चार भंग, स्त्रीवेदके साथ संज्वलन क्रोध, मान, माया अथवा लोभकी उदीरणा करनेपर चार और नपुंसकवेदके साथ संज्वलन क्रोध, मान, माया अथवा लोभकी उदीरणा करनेपर चार भंग होते है । इस प्रकार दो प्रकृतियोकी उदीरणा करनेवालोके सव मिलानेपर (४+४+४=१२) वारह भंग होते है।